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चरखारी-राज्य

को अतिथिशाला कहना चाहिए। ऐजंट गवर्नर जनरल और पोलि- टिकल एजंट आदि बड़े बड़े लोग यहीं ठहराये जाते हैं। कोठी खूब सजी हुई है; उसको छत से शहर का दृश्य बहुत अच्छी तरह दिखाई देता है। बरसात में जब सब पहाड़ियाँ हरित वर्ण हो जाती हैं तब इस कोठो के ऊपर से उनकी तरफ़ देखने से आँखों को अलौकिक आनन्द प्राप्त होता है।

चरखारी से मिला हुआ एक उपवन है। उसमें शिकार खेलने की सख्त मुमानियत है। उसमें सैकड़ों हिरन निःशङ्क, निडर और निश्चिन्त घूमा करते हैं। बड़े बड़े सींगोंवाले किसी किसी कृष्णसार मृग का रूप, रङ्ग और विशाल आकार देखकर कौतुक मालूम होता है। उपवन के बीच से एक सड़क गई है। उस में भी हिरनों के मुण्ड के झुण्ड बैठे हुए पागुर किया करते हैं। सड़क से आने जाने वाले आदमियों की वे बहुत ही कम परवा करते हैं। आप बन्दूक ताने चले जाइए-नङ्गी तलवार चमकाने में कसर न कीजिए वे आप की तरफ देखेंगे भी नहीं। महाराजा साहब के अभय वचन के विश्वास पर, आने जाने वालों के बाहुबल को-उनके शस्त्रास्त्र को-वे तुच्छ समझते हैं, घृणा की दृष्टि से देखते हैं,बड़ी बड़ी आंखें दिखा कर उनका उपहास सा करते हैं। इस उपवन के बीच में एक छोटा सा मकान है। उसमें,समय समय पर,बाजा बजता है, जिसे बड़े बड़े हरिण-नायक अपने बन्धु-बान्धवों समेत चड़े चाव से सुना करते हैं।

इस उपवन को देखकर हमें कालिदास द्वारा अभिज्ञान शाकुन्तल