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दृश्य-दर्शन


बादशाहों के समय की शोभा और समृद्धि का विचार करके बुद्धि चकित हो जाती है।

देहली का प्राचीन नाम हस्तिनापुर है। परन्तु इस हस्तिनापुर का पता ठीक ठीक नहीं लगता कि वह कहाँ पर था। प्राचीन हस्तिनापुर से कुछ दूर पर एक नगर इन्द्रप्रस्थ नाम का था। उसे पहले पहिल युधिष्ठिर ने अपनी राजधानी बनाया। ३० पीढ़ियों तक युधिष्ठिर के वंशज राजा लोग वहां राज करते रहे। उनके अनन्तर पांच सौ वर्ष तक एक दूसरे वंश ने वहां राज्य किया। फिर, वहां गौतम-वंश का राज्य हुआ। उस वंश के पन्द्रह राजा वहाँ हुए। गौतम के अनन्तर मयूरों ने वहां अपना अधिकार जमाया। मयूर-वंश का पिछला राजा पाल हुआ। इस पाल राजा को, आज से कोई दो हजार वर्ष पहले, उज्जयिनी के राजा विक्रमादित्य ने परास्त किया। उसी समय के लगभग दिलु अथवा दिलप नाम के राजा ने एक नया ही नगर बसाया; उस का नाम देहली पड़ा। कोई आठ सौ वर्ष तक देहली उजाड़ पड़ी रही। तदनन्तर तोमर घराने के लोग वहाँ रहने लगे। उनसे, कुछ दिनों में, चौहानों ने राज्य छीन लिया। चौहानों के प्रसिद्ध राजा विशालदेवने तोमर लोगों को वहांसे निकाल दिया। इस विशालदेव का नाम, फीरोजशाह की लाट पर जो शिलालेख है उस में, खुदा है। प्राचीन देहली पृथ्वीराज के उजाड़ किले के पास कहीं पर थी। लोहे का स्तम्भ जो अब वहां शेष है वह हिन्दुओं के उस प्राचीन नगर का एक मात्र चिन्ह है।

देहली के चारों ओर अनेक उजाड़ इमारतें पड़ी हुई हैं। उन