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चरखारी-राज्य

बहुत पुराने ज़माने में बुंदेलखण्ड गोण्ड-राजों के अधिकार में था। उनके बाद चंदेलों का राज्य हुआ। चंदेलों के अनन्तर बुंदेलों का आधिपत्य हुआ। चरखारी की रियासत में कहीं कहीं अब तक गोंड लोग रहते हैं। बेलखरा परगने में शायद अब भी गोंड राजा हैं;पर वे चरखारी के जागीरदार हैं। चरखारीके वर्तमान नरेश महाराजाधिराज सिपहदारुल्मुल्क सर मलखानसिंहजूदेव बहादुर, के० सी० आई० ई० महाराजा छत्रशाल के वंशज हैं।

चरखारी के पहले राजा का नाम खुमानसिंह था। १७६५ ईसवी के लगभग उन्होंने चरखारी के पास की एक पहाड़ी पर मङ्गलगढ़ नाम का एक किला बनवाया। यह पहाड़ी कोई ३०० फुट जमीन से ऊँची है। इस किले में कई तालाब हैं, उनमें विहारीसागर सब से अधिक प्रसिद्ध है। मन्दिर भी कई हैं। पहाड़ी पर किला बन जाने के बाद लोग उसके नीचे आकर बसने लगे। धीरे धीरे वहाँपर एक छोटा सा कसबा बस गया और नाम उसका पड़ा मडगलनगर । यही वर्तमान चरखारी है। पुरानी चरखारी वहाँसे कुछ दूर है।

राजा खुमानसिंह के बाद चरखारी की गद्दी राजा विजयबहादुर- सिंह को मिली। उनका मुख्य नाम विक्रमादित्यसिंह था, पर सब लोग उन्हें विजयबहादुरसिंह ही कहते थे। चरखारी की प्रसिद्ध कोठी आप ही की बनवाई है। उसी के नीचे कोठी-ताल नाम का जो एक उत्तम सरोवर है वह भी आप ही के औदार्य का फल है । ये बड़े गुण-ग्राहक थे। कवि भी अच्छे थे। इनकी बनाई हुई कई पुस्तकें अब तक विद्यमान हैं। बुंदेला राजों में राजा विजयबहादुर- सिंह ही पहले