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बनारस

जशाह के समय का है। ज़ियाअहमद ने उसे १६७५ ईसवी में बनवाया था। इस मसजिद का प्रायः सभी माल-मसाला हिन्दुओं और बौद्धों के मन्दिर तोड़ कर लाया गया है। यहाँपर वौद्धों के एक चैत्य का भग्नावशेष अभी तक बना हुआ है। इस चैत्य से कोई दो सौ गज़ के फासले पर एक बौद्ध-मन्दिर भी है। वह कुछ अच्छी हालत में है। उसमें ४२ खम्भे हैं। मुसलमानों ने कृपा कर के उस में कुछ जोड़ जाड़ कर उसका मकबरा बना डाला है।

तिलियानाला और राजघाट के किले में भी बौद्धों के प्राचीन विहारों और चैत्यों के चिन्ह अभी तक बने हुए हैं।

लाटभैरव राजघाट के किले से कोई एक मील है। वहांपर एक बड़ा सा तालाव है । उसके किनारे एक लाट या खम्भा है।उसीको लोग लाट-भैरव कहते हैं। उस पर ताँबा मढ़ा हुआ है। उँचाई उसकी बहुत थोड़ी है । पर जिस पत्थर के खम्भे का यह टुकड़ा है वह कोई ४० फुट ऊंचा रहा होगा। पुरानो इमारतों के विषय में जानकारी रखने बालों का यही अनुमान है । मुसल्मानों ने उसे तोड़ फोड़ कर छोटा कर दिया है। यह स्तम्भ पहले एक मन्दिर के प्राङ्गण में था। मन्दिर को औरङ्गजेब ने तुड़वा डाला और वहीं पर एक मसजिद बनवाई। यह स्तम्भ उत्त मसजिद के हाटे में था। सम्भव है,वह अशोक का कीर्ति-स्तम्भ हो और इसपर उसके अनुशासन खुदे रहे हों।

सारनाथ में किसी समय बौद्धों का बड़ा दोरदौरा था। यह जगह बनारस से कोई तीन मील उत्तर है। उसके पास बंगाल-नार्थ-वेस्टर्न रेलवे (गोरवर लाइन) काटेशन भी है। बनारस में लोग इसे