कहीं की जाली,बौद्ध लोगों के समय की है ।जान पड़ता है,जहां से यह सामग्री लाई गई थी वहां पहले बौद्धों का विहार था। बौद्धों के बाद हिन्दुओं ने उसे अपना मठ बनाया था। जब मुसल्मानों का प्रभुत्व हुआ तब उन्होंने उसे तोड़ तोड़ कर यह मसजिद तैयार की। इस मसजिद के दूसरे खण्ड में एक पत्थर के ऊपर खुदा हुआ ११९० ईसवी का एक लेख मिला है। उसमें बनारस और उसके आसपास के कई एक तालाब, मन्दिर और मठों के बनवाये जाने का जिक्र है।
चौखम्भा की मसजिद भी बनारस की प्रसिद्ध मसजिदों में से है। इसका सिर्फ कुछ ही हिस्सा मुसल्मानी ढंग का है। इसके प्रायः सारे खम्भे किसी बौद्ध इमारत से निकाल कर लगाये गये हैं।
मानमन्दिर । जयपुर के महाराज जयसिंह ने हिन्दुस्तान में पांच वेध-शालायें-जयपुर, देहली, मथुरा, उज्जैन और बनारस में-बन- वाई थीं। बनारस में जो वेध-शाला या यन्त्रशाला है उसीका नाम मान-मन्दिर है। उसमें जयसिंह के निर्माण किये हुए ज्योतिष विद्या सम्बन्धी दिगंश-यन्त्र, मितियन्त्र, चक्रयन्त्र और यन्त्र-राज आदि यन्त्र हैं। परलोक-वासी पण्डित बापूदेव शास्त्री ने इन यन्त्रों के विषय में एक पुस्तक लिखी है। बनारस में मानमन्दिर देखने की चीज है;परन्तु यन्त्रों का उपयोग समझाने वाला कोई साथ चाहिए। यन्त्र अच्छी हालत में नहीं हैं।
माधवदास का बाग शहर के पश्चिम तरफ़ है। उसके भीतर कई