श्वर का आदि मन्दिर यही है । पर फूरर साहब कहते हैं कि शकल-सूरत से यह पुराना नहीं मालूम होता। विश्वेश्वर का पहला मन्दिर यहीं रहा होगा और मुसलमानों के द्वारा उसके तोड़े जाने पर हिन्दुओं ने वर्तमान मन्दिर बनाया होगा।
दुर्गा । यह मन्दिर असी-संगम के पास है। इसे रानीभवानी ने बनवाया था। मन्दिर पत्थर का है, बड़ा है और उसमें अच्छा काम किया हुआ है। इसका मध्यभाग बारह खम्भों के आधार पर स्थित है। यहां बन्दर बहुत रहते हैं। हर मंगलवार को यहां दर्शकों की भीड़ होती है।
भैरवनाथ टाउनहाल के पास हैं। इनके हाथ में दो ढाई हाथ का एक डण्डा है। इसलिए ये दण्डपाणि कहलाते हैं। रविवार और मंगल को यहां अधिक भीड़ रहती है। यही शहर के देवी-देवताओं और मनुष्यों के कोतवाल या मैजिस्ट्रेट हैं। इस मन्दिर को पूना के पेशवा बाजीराव ने,१८२५ ईसवी में,बनवाया था।
अमेठी का मन्दिर । यह मन्दिर मणिकर्णिका पर है। यह लाल पत्थर का है और बहुत अच्छा बना हुआ है। यह अमेठी के राजा का बनवाया हुआ है।
इनके सिवा गोपालमन्दिर,वृद्धकाल,केदारनाथ,कामेश्वर,सोमेश्वर, शुकेश्वर,तारकेश्वर,शीतला,संकटा,नवग्रह और शनैश्चर आदि के अनेक मन्दिर हैं । यहां नैपालियों का भी एक प्रसिद्ध मन्दिर है।
इसकी बनावट कुछ कुछ चीन के मन्दिरों की सी है।