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दृश्य-दर्शन


नागपुर के राजा के दीवान मुंशी श्रीधर का बनवाया हुआ है। इस घाट के ऊपर की इमारत देखने लायक है।

दशाश्वमेधघाट बनारस के पांच पवित्र घाटोंमें से है। ग्रहण के समय वहां पर बड़ी भीड़ होती है। कहते हैं, वहां ब्रह्मा ने दस दफ़े अश्वमेध यज्ञ किया था। इसी लिए उसका नाम दशाश्वमेध हुआ। इसकी महिमा प्रयाग के बराबर समझी जाती है।

मानमन्दिरघाट। यह घाट महाराजा मानसिंह के मानमन्दिर के नीचे ही है।

मणिकर्णिकाघाट काशी के सब घाटों से अधिक प्रसिद्ध और पवित्र माना जाता है। यह घाट सब घाटों के बीच में है। यहीं पर तारकेश्वर और सिद्धविनायक के मन्दिर हैं। यहां पर जो कुण्ड है उसमें शङ्कर के कान की मणि गिर पड़ी थी। इसी से इसका नाम मणिकर्णिका हुआ। कहते हैं, विष्णु ने इसे अपने चक्र से खोदा था और अपने पसीने से भरा था। इसी के पास वह जगह है जहाँ मुर्दे जलाये जाते हैं।

सेंधियाघाट वायजाबाई सेंधिया का बनवाया हुआ है। वायजाबाई दौलतराव सेंधिया की रानी थी। बन चुकने के पहले ही यह घाट-जमीन में फँस गया। इसके दक्षिण जो मन्दिर है उसमें ऊपर से नीचे तक एक दरार हो गई है।

पञ्चगंगाघाट में पांच नदियां मिलती हैं। गंगा देख पड़ती हैं; बाकी, धूत, पापा इत्यादि चार, सुनते हैं, पृथ्वी के नीचे हैं! इससे वे देख नहीं पड़तीं।