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दृश्य-दर्शन

की बहुत अधिकता है। हंस,हाथी,मोर आदि के जो चित्र यहां पर बने हैं उनका रङ्ग अभी तक खराब नहीं हुआ है। देखने से जान पड़ता है कि अभी कल का है। चित्र भी बहुत सुन्दर और चित्ता- कर्षक हैं । इस महल के दो खण्ड ऊपर हैं और दो ही नीचे। परन्तु,आप जानते हैं,इसमें आजकल रहता कौन है ? इसमें रहते हैं बूढ़े बूढ़े चिमगादड़ों के कुटुम्ब ! पूर्व की तरफ़ वह ३०० फुट लम्बा और १०० फुट ऊँचा है और दक्षिण की तरफ़ बरबाद हालत में पड़ा है। इसमें जहां जहां पर गवाक्ष-जाल–जाली का काम- है,वहां वहाँ पर,बहुत बड़ी कारीगरी की गई है। इस महल की सुन्दरता की वे लोग भी प्रशंसा करते हैं जो पुराने जमाने की यञ्जिनियरी की जांच करने में बहुत योग्य समझे जाते हैं।

मान-मन्दिर से उत्तर कर्ण-मन्दिर है। उसे कीर्ति-मन्दिर भी कहते हैं । वह दो मज़िला है। उसका एक कमरा ४३ फुट लम्बा और २८ फुट चौड़ा है। उसमें बहुत ही खूबसूरत खम्भों की दो लैनें हैं;उन्हींके सहारे उसकी छत थंभी है। इस महल में पलस्तर का काम देखने लायक है।

मानमन्दिर और कर्णमन्दिर के बीच में विक्रम-मन्दिर है।

किलेके उत्तर तरफ़ जहांगीर और शाहजहाँ के महल हैं। उनमें कोई विशेषता नहीं।

इस किले के भीतर हिन्दुओं के ११ मन्दिर हैं।

(१) ग्वालप का मन्दिर जैन-मन्दिर