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दृश्य-दर्शन


ने अपनी दिनचर्या में लिखा है कि विजयवार्ता वाले लेख को उसने खुद देखा और पढ़ा था; परन्तु इस समय उसका कहीं पता नहीं। जब से यह किला देहली के बादशाहों के कब्ज़े में आया तब से उन्होंने उसके भीतर शाही क़ैदखाना बनाया। १३७५ ईसवी में राजा वीरसिंह देवने इसे मुसल्मानों से छीन लिया।

ग्वालियर के ऊपर अनेक विपदें आई और अनेक मुसल्मान-स्वामियों के स्वामित्व में उसे रहना पड़ा। वहांके नरेशों ने कभी देहली के बादशाहों को कर दिया; कभी मालवा के होशङ्गशाह को; और कभी जौनपुर के हुसेन शर्की को। १५०५ ईसवी में सिकन्दर लोधी ने ग्वालियर पर चढ़ाई की; परन्तु वहां के तत्कालीन राजा मानसिंह ने उसे मार भगाया। १५१७ में उसने आगरे आ कर ग्वालियर विजय की बड़ी भारी तैयारी की; परन्तु चढ़ाई करने के पहले ही वह मर गया। ग्वालियर-विजय में इब्राहीम लोधी को कामयाबी हुई। उसने ३०,००० सवार ३०० हाथी और बहुत सी पैदल फ़ौज भेज कर ग्वालियर को घेर लिया। घेरे ही के समय मानसिंह की मृत्यु हुई। मानसिंह के पुत्र विक्रमादित्य ने भी एक वर्ष तक मुसल्मानों की दाल नहीं गलने दी। घेरा बराबर जारी रहा। अन्त को उसने अधीनता स्वीकार कर ली और वह आगरे को भेज दिया गया।

तोमरवंश के ग्वालियर-नरेशों में मानसिंह बड़ा प्रतापी हुआ। उसने बहुत अच्छी अच्छी इमारतें बनवाईं। ग्वालियर के उत्तर-पश्चिम जो मोती झील है वह उसीकी खुदाई हुई है। कला-कौशल की उसने बड़ी उन्नति की। उसने पत्थर का एक हाथी बनवाया था;