विद्या और विज्ञान में भी कुशल थे। उनका मानमन्दिर इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि वे अद्वितीय ज्योतिषी थे। जयपुर के सिवा देहली, बनारस, मथुरा और उज्जैन में भी उन्होंने मानमन्दिर बनवाये थे। ये मानमन्दिर अनेक प्रकार के ज्योतिष-सम्बन्धी यन्त्रों से सुसज्जित थे। इन्हें वेधशाला या यन्त्रशाला कहना चाहिए। इनमें रक्खे हुए यन्त्र खुद महाराज जयसिंह की कल्पना के फल थे। उनसे खगोल-विषयक कितनी ही बातें मालूम होती हैं। ये मानमन्दिर अन्यत्र तो बिगड़ गये हैं, पर जयपुर का मन्दिर अच्छी दशा में है। कुछ दिन हुए उसका जीर्णोद्धार किया गया है। यन्त्रशाला के पास ही महाराजा के महलों में जानेका प्रवेशद्वार है। उसका नाम है त्रिपोलिया। फाटक के ठीक ऊपर अंगरेजी और देवनागरी में "त्रिपोलिया" लिखा है। गाड़ियों, घोड़ों और आदमियों की यहां हमेशा भीड़ रहती है। इस प्रवेश द्वार के ऊपर और दाहने बायें पत्थर के बारीक काम, जालियों वगैरह, को देखने ही से दर्शक को यह भासित हो जाता है कि भीतर महलों में जो शिल्प-चातुर्य्य दिखाया गया होगा वह बहुत ही अद्भुत होगा। महाराजा जयपुर के महल का नाम है चन्द्रमहल। उसके आस पास बड़े ही सुन्दर बाग हैं। जगह जगह फ़ौवारे लगे हुए हैं। फूलों से लदे हुए पेड़ों, पौधों और बेलों को देखकर नेत्रों को अलौकिक आनन्द होता है। चन्द्रमहल के इर्द गिर्द और भी कितनी ही इमारतें हैं। उनमें से बहुतेरी पीछे से बनाई गई हैं। चन्द्रमहल सब के बीच में है। वह महाराजा जयसिंह का बनवाया हुआ है और सात खण्ड का है। दूरसे देखने से यह राज-प्रासाद बहुत ही भव्य मालूम होता
पृष्ठ:दृश्य-दर्शन.djvu/१९
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
१४
दृश्य-दर्शन