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जयपुर



जड़े हुए हैं। जसमन्दिर और सुहागमन्दिर भी अवलोकनीय हैं। देहली के "दीवाने आम" के नमूने का एक सभागृह भी वहां है। उसके बीच में सब खम्भे सफेद पत्थर—सङ्गमरमर—के हैं। बाहर के खम्भे लाल पत्थर के थे। उनपर अच्छी नक्काशी थी। परन्तु सुनते हैं, देहली के मुग़ल सम्राट् जहांगीर ने इसपर एतराज़ किया। उसने कहा हमारे "दीवाने-आम" के मुकाबले की इमारत न बननी चाहिये। उसकी बराबरी का सभागृह अम्बर में बनना हमें पसन्द नहीं। इससे इन लाल पत्थर के खम्भों पर चूने का "प्लास्टर" करा दिया गया। अम्बर में बहुत से दर्शनीय देवमन्दिर थे। पर अब वे प्रायः उजाड़ और भग्न अवस्था में पड़े हैं।

अम्बर-नरेश सवाई जयसिंह ने, १७२८ ईसवी में जयपुर बसाया। राज्य की अधिकाधिक उन्नति होती जाने के कारण अम्बर में तकलीफ़ होने लगी। वहां राजधानी रखने में सुभीता न देख पड़ा। इससे महाराजा सवाई जयसिंह जयपुर बसाकर वहाँ आ रहे। जयपुर की दक्षिण दिशा को छोड़कर और सब तरफ़ पहाड़ियां हैं। पहाड़ियों पर क़िले हैं। शहर के चारों ओर शहर-पनाह है; उसमें सात फाटक हैं। जयपुर की प्रधान सड़कें १११ फुट चौड़ी हैं। उनके दोनों तरफ़ प्रायः एक ही तरह के मकान हैं। सड़कें खूब लम्बी हैं। चौराहे पर खड़े होने से चारों तरफ दूर-दूर तक का बड़ा ही मनोहर दृश्य देख पड़ता है। कबूतर वहां बहुत अधिक हैं। उनके झुण्ड के झुण्ड सड़कों पर घूमा करते हैं।

महाराजा जयसिंह जैसे प्रतापी और राजनीति कुशल थे वैसे ही