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बल्गारिया

से वहां इत्र बनता है। कोई ४० मन फूलों से आध सेर इत्र तैयार होता है। इन बड़ा बढ़िया होता है। वह पेरिस और लन्दन जाता है, जहाँ उससे अनेक प्रकार के इत्र और तेल आदि बनते हैं।

बलगारिया के मनुष्यों की रहन-सहन बहुत सीधी-सादी है। वे अपने घरों ही के बुने हुए मोटे कपड़े पहनते हैं। वे शौकीन नहीं। फिजूल चीजों के लिए वे अपना धन लुटाना उचित नहीं समझते । अमीर आदमी तक छोटे छोटे घरों में रहते हैं। घरों का फ़र्श मिट्टी ही का होता है। उन्हें चटक मटक विलकुल पसन्द नहीं । बलगा- रिया के निवासी अपनी इस स्थिति से यथेष्ट सन्तुष्ट रहते हैं। यही कारण है जो वे सर्वदा प्रसन्न और हृष्ट-पुष्ट देख पड़ते हैं। मितव्यय करने के कारण वे हर साल कुछ न कुछ रुपया बचा लेते हैं।

बलगारिया वाले भले-बुरे काम का अच्छा ज्ञान रखते हैं। आप किसी से कोई अनुचित काम करने के लिए कहें तो वह फौरन जवाब देगा कि वैसा करने के लिए उसकी आत्मा गवाही नहीं देती ; वैसा करना उसके लिए लज्जाजनक है। वह अपना समय व्यर्थ वाद-विवाद और भले-बुरे की व्याख्या में न वितायेगा।

बलगारिया में अनेक जातियों और धर्मों के मनुष्यों का निवास है। वे सभी अपने अपने विश्वास के अनुसार धर्माचरण करने के लिए स्वतन्त्र हैं। कभी किसी के धर्माचरण में किसी प्रकार का आघात नहीं होता। बलगारिया के अधिकांश निवासी आरथोडाक्स चर्च नामक ईसाई सम्प्रदाय के अनुयायी हैं। इस सम्प्रदाय के प्रधान पादरी सर्वसाधारण प्रजा के द्वारा चुने जाते हैं।