है। वह ६५८ ईसवी में बनी थी। ५००० कारीगर ६ वर्ष तक उस के बनाने में लगे रहे थे। उसके मीनार बहुत ऊंचे और बहुत ही मनोहर हैं। उनमें से दो की उंचाई कोई १३० फुट है। वहां हाथ के लिखे हुए कुरान की कई पुस्तकें देखने योग्य हैं। अली के हाथ का लिखा हुआ एक कुरान, सातवीं शताब्दी का वहां है; एक इमामहुसेन के हाथ का भी है। कफशेमुबारक (महम्मद की जूती), कद्-मुल-मुबारक (महम्मद के पैरों का चिन्ह) और मूये-मुबारक (महम्मद का केश) भी वहां देखने की वस्तु है।
चाँदनी-चौक देहली का मुख्य बाज़ार है। उसके दोनों ओर वृक्ष लगे हुए हैं। वहां देहली के प्रसिद्ध प्रसिद्ध दूकानदार बैठते हैं। चौक के बीच में नार्थब्रुक नाम का फौवारा है। १७२१ ईसवी में रोशनुद्दौला जफ़र खां की बनवाई हुई सुनहली मसजिद इसी फौवारे के पास है। यह मसजिद छोटी, परन्तु सुन्दर, है। इसी मसजिद में बैठकर नादिरशाह ने देहली की नरहत्या का कौतुक देखा था।
काली मसजिद, घण्टाघर, जैनमन्दिर, रानीबाग इत्यादि और भी कितने ही स्थान देहली में देखने योग्य हैं।
देहली में ऐसे अनेक स्थल हैं जो १८५७ के विद्रोह का स्मरण दिलाते हैं। उनमें से शस्त्रागार, सेन्ट जेम्स का गिरजाघर, काश्मीरी दरवाज़ा, कुदसियां बाग़, लडलो कैसल, हिन्दूराव का मकान मुख्य हैं।
देहली के आस पास भी अनेक दर्शनीय स्थान हैं। अशोक का एक बहुत प्राचीन स्तम्भ है। वह पहले मेरठ में था। ईसा के ३०० वर्ष पहले वह बना था। १३५६ ईसवी में उसे फीरोजशाह बादशाह