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तिबत

एक प्रकार के पहियों पर लपेट दिये जाते हैं। ये प्रार्थना-चक्र लकड़ी या पत्थर के खम्भों पर लगे रहते हैं और हवा के जोर से घूमते हैं। पहिये के साथ कागाज़ का टुकड़ा भी घूमा करता है। इस घूमने को तिबत वाले मन्त्र की आवृत्ति मानते हैं। तिबत में कई मठ और मन्दिर बहुत बड़े बड़े हैं। उन में पाठशालायें भी हैं ; पुस्तकालय भी हैं ; और शिक्षक लामा तथा विद्यार्थियों के रहने के स्थान भी हैं।

जिस समय अंगरेज़ी गवर्नमेंट ने सिकिम पर अपना प्रभुत्व जमाया उस समय,पहले पहल,तिवन और भारतवर्ष के सम्बन्ध का सूत्र- पात हुआ,एक सन्धि-पत्र लिखा गया ।उस पर चीन और भारत- वर्ष की गवर्नमेंट ने हस्ताक्षर किये। परन्तु इस सन्धिपत्र के नियम निर्विवाद न हुए ; बहुत सी झगड़े की बातें रह गई। कुछ दिनों में याटुङ्गु नामक नगर में तिवतवालों ने एक मण्डी खोली। याटुङ्ग तिबत की सीमा के भीतर है। वहां पर तिबत और हिन्दुस्तान, दोनों देशों के व्यापारियों को व्यापार करने की अनुमति मिली। परन्तु सन्धिपत्र के विवादास्पद नियमों का निवटारा न हुआ। झगड़े की जड़ें बनी रहीं। उन्हीं को आधार मान कर जनरल मैकडोनल्ड और कर्नल यङ्गहसबैंड ने ससैन्य ओर सशस्त्र तिबत में प्रवेश किया। जब पहले पहल तिबत मिशन ने अपना अस्तित्व प्रकट किया तव यह बात कही गई कि वह सर्वथा शान्तिमूलक है ; वह अशान्ति अथवा विद्रोह का कारण न होगा। परन्तु इस मिशन ने अब विकराल रूप धारण किया है। तूना में तिवन वालों की जो हत्या हुई है उसने इसके शान्त स्वरूप को विलकुल ही बदल कर और का और कर