सैफुदौला, नजमुद्दौला का छोटा भाई था । उसका वसीका कम्पनी बहादुर ने काट कर ४२ लाख कर दिया। नब्बाब के नाम के साथ सिर्फ नव्वाबी रह गई। उसके और अखतियारात लन्दन में कम्पनी के डाईरेकर्स के दफ्तर में जा पहुंचे। सैफदौला ने सिर्फ चार वर्ष- १७६६ से १७७० ईसवो तक मुरशिदाबाद की मसनद का सुख भोगा। इस बीच,१७६६ ईसवी में,चेचक की बड़ी विकराल बीमारी पैदा हो गई। उसने ६३ हजार आदमियों को हजम कर लिया। नव्वाब साहब को भी उसने न छोड़ा।
मुबारकुद्दौला को नव्बाबी मिली। उसकी उम्र उस वक्त सिर्फ १२ वर्ष की थी। वह मीरजाफ़र का बेटा था। उसकी मां का नाम बब्बू बेगम था। पर हेस्टिंग्ज़ ने बब्बू बेगम को हटा कर मुबारकुदौला की सौतेली माँ मनोबेगम को बालक नव्वाब का रक्षक नियत किया। सगी को छोड़ कर सौतेली माँ को यह अधिकार क्यों मिला इसका ठीक ठीच पता नहीं चलता। पर मनोबेगम के वक्त के काग़ज़-पत्र जो जाँचे गये तो बहुत से रुपये का हिसाब ही न मिला । तहक़ीक़ात हुई। उससे मान्म हुआ-मनी बेगम ने खुद कहा कि कई लाख रुपया माननीय गवर्नर जनरल,श्रीयुत हेस्टिंग्ज साहब बहादुर,ने कबूल फ़रमाया था। महाराज नन्दकुमार ने हेस्टिग्ज़ पर बेगम से रुपये लेने का इलज़ाम लगाया;पर हेस्टिग्ज़ ने अपने विलायती मालिकों को समझा-बुझा कर सन्तुष्ट कर लिया। मुबारकु -द्दौला का वसीका सिर्फ १६ लाख साल रह गया। माल के दफ्तर मुरशिदाबाद से कलकत्ते उठ गये। न्याय-विभाग का काम भी कम्पनी बहादुर ने