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मुरशिदाबाद

थे,उनको भी कम्पनी के अफ़सर बिला महसूल व्यापार करने का परवाना बेचने लगे। यह सिराजुद्दौला को नागवार हुआ। उसने अँग- रेज़ों से कहा, किला गिरा दो। पर उन्होंने यह बात न मानी । सिराज ने दो दफ़ अपना दूत भी कलकत्ते भेजा। पर अँगरेज़ उससे बुरी तरह पेश आये। इस दशा में निरुपाय होकर सिराजु- द्दौला ने अँगरेज़ों की कासिम बाज़ार वाली कोठी पर कब्जा कर लिया। इस पर भी जब कलकत्ते का किला न गिराया गया तब सिराजुद्दौला ने कलकत्ते पर चढ़ कर उस पर भी अधिकार कर लिया। कहते हैं,काल कोठरी,या अन्धकूप की हत्या इसी समय हुई।

अँगरेज़ों से सिराज ने पीछे से सन्धि कर ली। पर उसके कुछ हो दिन बाद वह भङ्ग हो गई। अंगरेज़ों ने चन्दन नगर को लूट कर फ़रासीसियों को वहां से निकाल दिया। इसके बाद उन्होंने लोभ के वश होकर हुगली,बर्दमान और नदिया को भी लूट लिया। सिराजुद्दौला की इच्छा युद्ध करने की न थी। वह अंगरेजों को व्यापार करने का अधिकार पहले का जैसा देने पर राज़ी था। कलकत्ते के व्यापारी अंगरेज़ भी युद्ध के खिलाफ़ थे; पर अँगरेज़ों के स्थल-सेनापात क्लाइव आर जल-सेनापति वाटसन को यह बात पसन्द न आइ । उन्होंने अपना निजी मतलब सिद्ध करने के इरादे से युद्ध करना हा निश्चित किया। जगत सेठ, मोरज़ाफर,कलकत्ते का भतपूर्व गवनर मानिकचन्द,ढाके का गवर्नर राजवल्लभ और वणिक् अमीचन्द अगरेजों से मिल गये। एक दस्तावेज़ लिखी गई। मुरशिदाबाद के खजाने से कम्पनी बहादुर को एक कराड, कल- कत्त अगरेज,