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दृश्य-दर्शन

कर दी । १८१५ ईसवी में वहां सिर्फ १,६५,००० आदमी रह गये। और अव ? अब सिर्फ १५००० ! किसी समय मुरशिदाबाद बीस मील के घेरे में बसा हुआ था;पर अब उसकी परिधि ६ मील से अधिक नहीं!

पलासी-युद्ध के बाद ही से मुरशिदाबाद का पतन शुरू हो गया। अंगरेज़-राजके प्रभुत्व की वृद्धि और मुरशिदाबाद के वैभव का हास साथ ही साथ होता गया। धीरे धीरे दोनों अपनी चरमसीमा को पहुंच गये । यद्यपि मुरशिदाबाद की इस समय अत्यन्त ही हीन अवस्था है तथापि सौ डेढ़ सौ वर्ष पहिले उसने अनेक राजकीय खेल खेलें हैं। नहीं मालूम कितने जाल,कितने फरेब,कितने विश्वासघात के अभिनय वहां हुए हैं। अंगरेजी राज्य की वह जन्मभूमि है;क्लाइव-कलङ्क की वह कृष्ण-वैजयन्ती है;स्वामि-द्रोह, स्वार्थ और कृतघ्नता की वह पतालभेदी जड़ है । अब भी उसमें बहुत सी इमारतें और चीजें देखने के लायक़ हैं। और नहीं तो मुरशिदाबाद का नाम सुनकर अर्थलोलुप और स्वदेशशत्रु मानिकचन्द,अमीचन्द,रायदुर्लभ,राजबल्लभ,नन्दकुमार आदि का स्मरण नया हो उठता है। इन्हीं कारणोंसे बाबू पूर्णचन्द मजूमदारने मुरशिदाबाद पर, कुछ दिन हुए, एक किताब अंगरेजी में लिखी है। उसीकी कुछ बातों का ज़िक्र इस लेख में किया जाता है।

ईस्ट इंडियन-रेलवे की "लूप लाइन” में एक स्टेशन नलहाटी है। वहाँ से एक छोटी सी लाइन आज़मगज गई है । लक्खीसराय की तरफ से मुरशिदाबाद जाने वालों को वहीं उतरना पड़ता है। अज़म-