नील और अफ़ीम के व्यापार का बड़ा भारी केन्द्र है। यहां से चीन को अफ़ीम भेजी जाती है। पर अब चीन वाले अफ़ीम खाना-पीना छोड़ रहे है। इससे यहां का कारोबार अब बन्द होने पर है। यहां साधारण इमारतें तो कितनी ही हैं परन्तु एक देखने लायक है। उसे गोला कहते हैं । १७८३ में ईस्ट-इण्डिया कम्पनी के कर्मचा- रियों ने अनाज भरने के लिए इसे बनवाया था। बाहर से इसकी परिधि लगभग डेढ़ सौ गज़ के है। इसका भीतरी व्यास कोई छत्तीस गज होगा। दीवार इसकी कोई तीस गज ऊँची और चार गज चौड़ी है। सुनते हैं,इसमें लगभग अड़तीस लाख मन अनाज भरा जा सकता है। इसके ऊपर चढ़ने के लिए बाहर से सीढ़ियां बनी हुई हैं। जहाँ सीढ़ियाँ समाप्त होती हैं वह स्थान तीन चार गज़ लम्बा-चौड़ा है। बीच में एक पत्थर है, जिसे उठाने पर भीतर जाने का रास्ता मिलता है। भीतर ज़रा से भी खटके की इतनी प्रतिध्वनि होती है कि गोले के भीतर एक किनारे पर खड़ा हुआ मनुष्य दूसरे किनारे पर खड़े हुए मनुष्य के मन्द से मन्द शब्द को भी सुन सकता है।
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दृश्य-दर्शन
[अप्रैल १९१२]