ईसवी के बीच बने हैं। जो दीवार शहर के चारों ओर है वह और जुमा मसजिद भी उसके थोड़े ही दिन पीछे निर्माण हुई है। औरङ्गज़ेब के द्वारा क़ैद किये जाने के पहले केवल छः वर्ष तक शाहजहाँ ने अपने बनवाये हुए महल में वास किया। उसके अनन्तर औरंगज़ेब कोई २० वर्ष तक वहाँ रहा। फिर १६८० ईसवी में दक्षिण की ओर वह विजययात्रा के लिए निकला। शाहजहां के अनन्तर फिर कोई अच्छी इमारत देहली में नहीं बनी।
१७३९ ईसवी में फ़ारस के बादशाह नादिरशाह ने देहली पर चढ़ाई की और १२ मार्च को प्रातःकाल से दो पहर तक नगर के प्रत्येक गलीकूचे में उसने रुधिर की नदियां बहाईं। नादिरशाह की सेना ने देहली के असंख्य निवासियों का संहार किया। यह मनुष्य-हत्या देहली के बादशाह महम्मदशाह के विनय करने पर बन्द हुई; परन्तु, तब तक, नगर का बहुत कुछ भाग उजाड़ हो चुका था। देहली की शोभा की क्षीणता उसी समय से आरम्भ हुई। नादिरशाह वहांसे असंख्य धन के साथ बादशाह का मयूर-सिंहासन और कोहेनूर हीरा भी ले गया।
१७९० ईसवी में महादाजी सेंधिया ने देहली को विजय किया और १८०३ ईसवी के सितम्बर तक उसे उसने अपने अधीन रक्खा। १८०३ ईसवी में जनरल लेक ने सेंधिया की सेना को परास्त करके शाह आलम और उसके कुटुम्ब को अपने अधीन कर लिया। १८०४ ईसवी के आक्टोबर महीने में यशवन्तराव होलकर ने बहुत दिनों तक