पृष्ठ:दुर्गेशनन्दिनी प्रथम भाग.djvu/७२

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बहुत अच्छा, कह कर रहीम वहां ठहर गया।

पठानों की सेना एक छत से दूसरे छत पर होकर दुर्ग के अन्यत्र चल गई।


सत्रहवां परिच्छेद।
प्रेमी।

जब बिमला ने देखा कि उसमान अन्यत्र चलागया तो मन में कुछ भरोसा हुआ कि ईश्वर चाहे तो अब बन्धन से छूट जाउं और शीघ्र उसका उपाय करने लगी।

कुछ देर बाद उसने प्रहरी से वार्तालाप आरंभ की। यमदूत क्यों न हो। मनमोहनी की बात सुन मन चलायमान होही जाता है। पहिले तो विमला ने नाना प्रकार की बातचीत की फिर उसका नाम धाम आदि गृहस्ती की बातें पूछने लगी और प्रहरी का भी जी लगने लगा। औसर पाय बिमला ने धीरे २ जाल फैलाया। एक तो सुन्दर स्त्री, दूसरे प्रेममय अलाप, तीसरे तिर्छी चितवन, प्रहरी तो घायल हो गया। बिमला ने देखा कि अब यह भली भांति आशक्त हो गया और कहा-तुम डरते क्यों हो शेख़ जी? यहां हमारे समीप आकर बैठो।

कहने की देर थी पठान आम की भांति टपक पड़ा। इधर उधर की बात करते २ जब बिमला के देखा कि अब विष विध गया है और प्रहरी बार-बार उसके मुंह की ओर देख रहा है तो बोली।

शेख़जी क्या नींद आती है? यदि मेरा हाथ खोल दो तो मैं तुमको पंखा झल दूं फिर बांध देना।