पृष्ठ:दुर्गेशनन्दिनी प्रथम भाग.djvu/५३

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दि०| एक बिहाग गाओ?

बिमला ने कहा अच्छा गाती हूं और गाने लगी।

"ठाढ़े रहो बांके यार गगरिया मैं घर धर आऊं। गगरी मैं धरि आऊं चुनरी पहिर आऊं करि आऊं सोरहो सिंगार ॥१॥

गाते २ बिमला को मालूम हुआ कि कोई पीछे से कपड़ा खींचता है, पीछे फिर कर देखा तो दिग्गज उसका अंचल पकड़े उससे सट के चला आता है, बिमला ने कहा क्यो क्या फिर भूत आया क्या?

ब्राह्मण के मुंह से बात न निकली केवल उंगली के संकेत से दिखलाया कि 'वह।' बिमला सन्नाटे में आकर उसी ओर देखने लगी और खर्राटे का शब्द उसके कान में पड़ा और पथ के एक ओर कोई पदार्थ भी देख पड़ा। साहस पूव्वर्क उसके समीप जाकर देखा कि एक सुन्दर कसा कसाया घोड़ा मृत्यु से झगड़ रहा है। बिमला आगे बढ़ी और उस सैनिक अश्व के क्लेशकर अवस्था पर सोच करने लगी और कुछ काल पर्य्यन्त चुपचाप रही। जब आध कोस निकल गए तो दिग्गज ने फिर बिमला का अंचल पकड़ कर खींचा?'

बिमला ने कहा कौन।

गजपति ने एक वस्तु उठाकर देखाया, बिमला ने देखकर कहा यह किसी सिपाही की पगड़ी है और फिर सोचने लगी कि जिसका घोड़ा था, जान पड़ता है कि यह पगड़ी भी उसी की है। नहीं तो यह किसी पदचारी की पगड़ी जान पड़ती है!