मनमें तो आया कि शरीर की दाल भी पोंछके खा जांय परन्तु बन न पड़ा। आसमानी के निमित्त जो भात साना था वह सब खा गए पर अरहर की दाल का मनमें सोंच बनाही रहा।
जब खा पी चुके आसमानी ने स्नान कराया और मन स्थिर हुआ तो विमला ने कहा "रसिकदास एक बात है।" रसिकदास ने पूछा, क्या बात है?
वि०| तुम हम लोगों को चाहते हो नहीं?
दि०| कैसा कुछ।
वि०| दोनों जनी को?
दि०| हां दोनों को।
वि०| जो हम कहैं सो करोगे?
दि०| हां।
वि०| अभी?
दि०| हां अभी।
वि०| इसी घड़ी?
दि०| इसी घड़ी।
वि०| हम लोग यहां क्यों आई हैं जानते हो।
दि०| नहीं।
आसमानी ने कहा 'आज हम तुम्हारे संग भाग चलेंगी।" दिग्गज मुंह देखने लगा और बोला हां!
"विमला ने हंसी रोक के कहा बोलते क्यों नहीं?"
आं आं आं आं, तो तो तो कह कर दिग्गज रह गया किन्तु मुंह से शब्द नहीं निकला।
विमला ने कहा "तो क्या तुम न चलोगे"
आं आं आं तो अच्छा स्वामी से पूछ आऊं।