और बैठ कर खाने लगा। जब दो तीन ग्रास खा चुका तब आसमानी ने कहा, चलो हुआ अब केवाड़ खोल दो।
दि०| इतना यह भी खा लूं।
आ०| अभी भण्डार नहीं भरा, उठो नहीं तो मैं कह दूंगी कि तूने बात कहके फिर खाया।
दि०| नहीं नहीं, ए देख मैं उठा और मुंह बिचका कर रहा सहा भात छोड़ कर कवाड़ खोल दिया।
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आसमानी को भीतर आते देख दिग्गजने बड़े प्रेम से कहा आओ प्यारी।
आसमानी ने कहा, वाहरे—ठठोली करते हो?
दि०| नहीं तुमसे क्या ठठोली करैंगे।
आ०| इसी से तुम्हारा नाम रसिक दास है?
दि०| रसिकः कौपिको वास:। प्यारी तुम बैठो मैं हाथ धो आऊं।
आसमानी ने मन में कहा, हां हाथ क्यों न धोवोगे। हम अभी तुमको और खिलावेंगे कि? और कहा कि क्यों; हाथ क्यों धोते हो, सब भात खा न जाओ।
दिग्गज ने कहा "यह कहीं हो सकता है कि बात कहके और फिर भात खाय।"
आ०| और यह भात बचा जो है। क्या भूखे रहोगे।
दिग्गज ने मुंह बिगाड़ कर कहा, क्या करूं तूने खाने भी