पृष्ठ:दुर्गेशनन्दिनी प्रथम भाग.djvu/३

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अप्रसन्न हुए कि बिना आज्ञा के उनके रचित ग्रन्थ का उलथा क्यों किया गया किन्तु कई बेर की लिखापढ़ी में इस प्रतिज्ञा से आज्ञा दिया कि ग्रन्थ की बिक्री में जो लाभ हो उसमें से कोई अंश बाबू साहब को भी दिया जाय। जो कि मैंने इस ग्रन्थ को केवल देश हित के अभिप्राय से प्रस्तुत किया है, मैंने इसका मुद्रण और विक्रय कुल बाबूसाहब को समर्पण किया किन्तु उनको स्वीकृत न हुआ अतएव इतने दिनो उनकी मार्ग प्रतीक्षा कर अब इस प्रथम खण्ड को आप लोगों के चित्त विनोदार्थ अर्पण करता हूं कृपा कर ग्रहण कीजिये। दूसरा खण्ड भी छप रहा है शीघ्र उपस्थित हो जायगा।

कम्प कटहन
आज़मगढ़
११ एप्रेल सन् १८८२ ई.
आप का अकिञ्चन दास
गदाधर सिंह वर्म्मा।