पृष्ठ:दुर्गेशनन्दिनी प्रथम भाग.djvu/११

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आने का शब्द सुनाई दिया और राजपूत ने जल्दी से बाहर निकल कर देखा कि सैकड़ों सवाद चले जाते हैं किन्तु उनके पहिरावे से जाना कि मेरीही सी सेना है। जगतसिंह युद्ध के कारण विष्णुपुर के प्रदेश में जाकर और शीघ्र एक शत अश्वारोहिनी सेना लेकर पिता के पास चले जाते थे। सन्ध्या हो जाने के कारण राजकुमार दूसरी राह पर चले गये और सवार लोग और राह होगए थे। अब इन्होंने उन को देख कर पुकार कर कहा कि “दिल्ली के राजा की जय होय” यह शब्द सुन उन में से एक इनके निकट आया और इन्होंने कहा “धरमसिंह, मैं आंधी पानी के कारण यहीं ठहर गया और तुम्हारी राह देख रहा था।”

धरमसिंह ने प्रणाम कर के कहा कि “हम लोगों ने आपको बहुत ढूंढ़ा परन्तु जब आप न मिले तो घोड़े की टाप देखते चले आते हैं घोड़ा यहीं बट की छांह में खड़ा है अभी लिए आता हूं।”

जगतसिंह ने कहा तुम घोड़ा लेकर यहीं ठहरो और दो आदमियों को भेजो किसी निटकस्थ ग्रामसे एक डोली और कहार ले आवें और शेष सेनासे कहो कि आगे बढ़ें।

धरमसिंह यह आज्ञा पाकर बड़े विस्मित हुए किंतु स्वामि भक्तिता के विरुद्ध जान चुप चाप जाकर सैन्यगण से इस अभिप्रायको कह दिया। उनमें से कितनों ने डोलीका नाम सुन मुसकिरा कर कहा “आज तो नए २ ढङ्ग देखने में आते हैं” और कितनों ने कहा “क्यों नही! राजाओं की सेवाको अनेक स्त्री रहा करतीं हैं।”

इतने में औसर पा घूंघट खोल उस नवीना सुन्दरी ने सहचरीसे कहा क्यों, विमला! तुम ने राजपुत्रको पता क्यों नहीं