माला गूंधी, एल अपने गले में पहिनी और दूसरी जगतसिंह के गले में डाल दी किन्तु राजकुमार की माला तलवार में लग कर टूट गई ! 'अब तुम्हारे गले में माला न पहिनाऊंगी पैर में बेड़ी डालूंगी' यह कहकर उसको बेड़ी का आकार बनाने लगी जब बेड़ी डालने चली तो जगतसिंह हट गए। वह पकड़ने लगी तो वे और हटे। तिलोत्तमा पीछे २ दौड़ने लगी और जगतसिंह पहाड़ी से उतरने लगे। मार्ग में एक झरना मिला, राजकुमार तो फांद कर पार निकल गए तिलात्तमा इधर उधर फिरने लगी, इस आशा से कि पानी जहां कम हो वहां से उतरें पर जिधर देखा उघर और पानी विशेष देख पड़ा और क्रमशः नदी का आकार होगया। इतने में जगतसिंह लोप होगए। करारी उंची थी और वह चलते २ थक गई थी। पैर से खिसक २ कर मिट्टी नदी में गिरती थी और बड़ा भयंकर शब्द होता था। तिलोत्तमा ने चाहा कि फिर ऊपर चढ़े पर चला नहीं जाता था वहीं बैठकर रोने लगी। इतने में कतलुखां की आत्मा आकर मार्ग छेक कर खड़ी हुई और गले की कुसुममाला 'जंजीर' होगई, हाथ की सुमिरनी पैर पर गिर पड़ी। अकस्मात कतलूखां ने उस को घुमा कर नदी में फेंक दिया।
स्वप्न वृत्तान्त समाप्त कर तिलोत्तमा सजल नेत्र कर बोली 'युवराज यह केवल स्वप्न नहीं, मैंन जो फूल की बेड़ी आपके लिये बनाई थी वह वास्तविक लोहे की हो कर मेरे ही पैरों में आ पड़ी। फूल की माला जो मैंने पहनाई थी वह तो असि द्वारा कट गई।'
राजकुमार ने हंस के अपनी कमर से तलवार खोल कर तिलोत्तमा के पैर के नीचे रख दिया और बोले---
'लो मैन मसि तुम्हारे सामने घरदी अब फिर माला