पृष्ठ:दुर्गेशनन्दिनी द्वितीय भाग.djvu/५३

यह पृष्ठ प्रमाणित है।
५०
दुर्गेशनन्दिनी।


तुझसे मिलूंगी।'

इस प्रकार तोष जनक बातें कहकर बिमला ने तिलोत्तमा को समझाया किंतु उसने तिलोत्तमा के हेतु जो अपना जाना बंद रक्खा इसका भेद तिलोत्तमा को कुछ न मालूम हुआ बहुत दिन से तिलोत्तमा के मुख पर प्रसन्नता के चिन्ह नहीं देख पड़ते थे बिमला की बातें सुनकर आज उसका बदन कमला सा खिल उठा। बिमला को भी उसकी दशा देखकर आनंद हुआ। गदगद स्वर से बोली 'लो अब मैं जाती हूँ।'

तिलोत्तमा ने कुछ संकुच कर कहा 'मैं देखती हूँ कि तू दुर्ग की सम्पूर्ण बातों को जानती है बता तो हम लोगों के और साथी कहाँ है कौन किस दशा में है?'

बिमला ने देखा कि इस विपद में भी जगत सिंह तिलोत्तमा को नहीं भूलते। उसने उनका कठोर पत्र पाया था उस में तिलोत्तमा का नाम भी नहीं था, इस बात को सुनकर तिलोत्तमा को और भी दुःख होगा इसलिये उसका ज़िक्र न करके बोली—

'जगतसिंह भी इसी दुर्ग में हैं और कुशल से हैं।'

तिलोत्तमा चुप रह गई।

बिमला आँसू पोंछते २ वहाँ से चली गई।

 

——◎——

तेरहवां परिच्छेद।
अंगूठी दिखलाना।

बिमला के जाने के पीछे तिलोत्तमा के मन में चिन्ता उत्पन्न हुई। पहिले तो यह सोचकर मनको बड़ा आनंद हुआ कि अब शीघ्र दुष्ट के बंधन से छुटूंगी और फिर बिमला का उस पर स्नेह और तद्धारा उद्धार। फिर सोचने लगी कि छूट कर