पृष्ठ:दुर्गेशनन्दिनी द्वितीय भाग.djvu/२२

यह पृष्ठ प्रमाणित है।
१९
द्वितीय खण्ड



होने पाया अब तो यह बोध होता है कि कुछ दिन में सुन्ने में आवेगा कि तिलोत्तमा भी एक थी और उसके सङ्ग बिमला भी कोई थी इसीलिये आपको यह पत्र लिखती हूँ। मैं बड़ी पापिन हूं मैंने अनेक अनुचित कर्म किये हैं। जब मैं मर जाऊंगी लोग निन्दा करेंगे और मुझ को अपवादक कहेंगे उस समय कौन मुझको कलंकशून्य सिद्ध करेगा? ऐसा कौन हितकारी है? हां एक है और वह थोड़ेही दिनों में इस लोक को त्याग परलोक को सिधारेगा, अभिराम स्वामी से मैं उरिन नहीं हो सकी। मैंने विचारा था कि एक दिन आपकी दासियों में मैं भी हूंगी। आपने भी एक दिन हमारे निजों की भांति काम किया है। हा! मैं यह बात किस्से कह रही हूं? अभागिनियों के दुर्भाग्य ने संपूर्ण हितकारियों का नाश कर डाला। जो हो आप हमारी इस बात का स्मरण रखना। जब लोग हमको कुलटा और गणिका कहेंगे तो आप कहियेगा कि बिमला नीच थी, अभागिन थी किन्तु गणिका नहीं थी। जिनका अभी परलोक हुआ है उनके साथ इस दासी का शास्त्रनियमानुसार पाणिग्रहण हुआ था। बिमला विश्वासघातिनी नहीं है।

अद्यपर्यन्त यह बातें छिपी थीं आज इसको कौन पतियाता है? यदि पत्नी थी तो दासी का काम क्यों करती थी? सुनिये मान्दारणगढ़ के समीपवर्त्ती एक ग्राम में शशिशेखर भट्टाचार्य रहते थे। युवा अवस्था में उन्होंने रीत्यानुसार विद्याध्ययन किया किन्तु इस्से उनका स्वाभाविक दोष दूर नहीं हुआ। और सब गुण उनमें बहुत अच्छे थे केवल एक दोष था किन्तु वह तो जवानी का दोष था।

मान्दारणगढ़ के जयधरसिंह के एक सेवक की स्त्री बड़ी सुन्दर थी। स्वामी उसका सेना में सिपाही था इसकारण