हम तुम को बध भूमि में ले चलें।
उसमान के पीछे २ स्त्री बध भूमि में जाकर चुपचाप खड़ी हुई। बीरेन्द्रसिंह एक भिखारी ब्राह्मण से बात कर रहे थे इस्से इसको नहीं देखा। घूंघटवाली ने घूंघट हटा कर देखा तो वह ब्राह्मण अभिराम स्वामी था।
बीरेन्द्रसिंह ने अभिराम स्वामी से कहा 'गुरुदेव अब मैं बिदा होता हूं। और मैं आप से क्या कहूँ इस लोक में अब मुझको और कुछ न चाहिये।'
अभिराम स्वामी ने उंगली से पीछे खड़ी घूंघटवाली स्त्री को दिखाया। बीरेन्द्रसिंह ने मुंह फेर कर देखा और घूंघटवाली झपट घूंघट हटा बेड़ी बद्ध बीरेन्द्रसिंह के चरण पर गिर पड़ी।
बीरेन्द्रसिंह ने गदगद स्वर से पुकारा 'बिमला।'
किन्तु बिमला रोने लगी।
'हे प्राणनाथ! हे स्वामी? हे राजन्! अब मैं कहां जाऊं। स्वामी मुझको छोड़कर तुम कहां चले ? मुझको किसको सौंपे जाते हो। हा प्रभू।'
बीरेन्द्रसिंह की आंखों से भी आंसू गिरने लगे। हाथ पकड़ कर बिमला को उठा लिया और बोले 'प्यारी? प्राणेश्वरी! क्यों तू मुझको रोलाती है। शत्रु देख कर मुझको कायर समझेंगे।'
विमला चुप रही। बीरेन्द्रसिंह ने फिर कहा 'बिमला। मैं तो अब जाता हूं तुम लोग मेरे पीछे आना।'
विमला ने कहा ' आऊंगी तो।'
(और धीरे से जिसमें और लोग न सुनें) आऊंगी तो परंतु इस दुख का प्रतिशोध करके आऊंगी।'