यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
७१
अमरप्रकाश


ही महान् पुरुषों और सत्य के धुनी खोजकों को उत्पन्न किया है। और बौद्धिक क्षेत्र में उनका कार्य्य किसी दशा में कम नहीं हो सकता। उन्होंने शिक्षा-सम्बन्धी कितने ही महान् आदर्शों को विकसित किया है जो शिक्षा-सम्बन्धी विचार और अभ्यास के लिए बहुत मूल्यवान् हैं (कोष्ठक के शब्द हमारे हैं)

ये उद्धरण एक ऐसी प्रामाणिक पुस्तक से दिये गये हैं जिसके लेखक को कोई हिन्दुओं और भारतीयों का कदापि पक्षपाती नहीं कह सकता। इनसे किसी भी जिज्ञासु को यह विश्वास हो जाना चाहिए कि मिस मेयो की स्थिति बड़ी भद्दी है और जिन आधारों पर उसने अपनी रचना की है वे सर्वथा असत्य हैं।

सौभाग्य से कुछ सरकारी पर्चे भी हमें ऐसे प्राप्त हो गये हैं जिनसे प्रकट होता है कि भारतवर्ष में शिक्षा का कितना अच्छा प्रचार था और प्राचीन पद्धति से हमारी आवश्यकताओं की कैसी पूर्ति होती थी। ब्रिटिश लोगों ने इस देश पर अधिकार करके हमारी उस प्राचीन पद्धति को तो समूल नष्ट कर दिया परन्तु उसके स्थान पर हमारी शिक्षा का कोई ऐसा प्रबन्ध नहीं किया जो पर्याप्त और सन्तोषजनक कहा जा सके। इन पर्चों के सम्बन्ध में डाक्टर लीटनर-कृत 'पञ्जाब में प्राचीन शिक्षण-पद्धति का इतिहास' नामक एक उल्लेखनीय ग्रन्थ है। डाक्टर लीटनर पञ्जाब में शिक्षा विभाग के प्रमुख व्यक्तियों में से थे। लाहौर के गवर्नमेंट-कालेज के वे प्रथम प्रिंसिपल थे और उसके बाद पञ्जाब में शिक्षा-विभाग के सर्वोच्च अधिकारी हुए थे। उन्होंने अपने समय तक अर्थात् १८८० तक जीवित प्राचीन शिक्षण-पद्धति की अत्यन्त तत्परता और सचाई के साथ जो खोज की थी उसी को सरकार ने १८८२ ई॰ में 'नीली किताबों' के रूप में प्रकाशित किया था। अकस्मात् डाक्टर लीटनर ने अपने विषय से सम्बन्ध रखनेवाले कई प्राचीन कर्मचारियों और लेखकों के अनुभव भी अपनी पुस्तक में दे दिये हैं। डाक्टर लीटनर की अमूल्य पुस्तक से अधिक उद्धरण देने के लिए हम पाठकों से क्षमा-प्रार्थना करने की आवश्यकता नहीं समझते क्योंकि इससे अँगरेज़ों के शासन-काल से पहले भारत की शिक्षा-सम्बन्धी स्थिति का पता चलता है। और सत्य तक पहुँचने के लिए विशुद्ध परीक्षा से जो बातें ज्ञात हुई हों उनका सहारा लेना चाहिए न कि मिस मेयो के समान विरुद्ध-मत प्रचारिका के खोखले शब्दों का।