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अमरप्रकाश


करनेवाले लोग लिखते-पढ़ते भी नहीं थे। परन्तु कुछ कामों के लिए संस्कृत के तत्सम्बन्धी ग्रन्थ कंठ कर लिये जाते थे।'

रेवरेंड 'की' ब्राह्मणों की शिक्षा-प्रणाली के सम्बन्ध में अपने निरीक्षण का सारांश इस प्रकार देते हैं[१]:-

"ब्राह्मणों की शिक्षण-पद्धति, मुस्लिम शिक्षा-प्रणाली की भांति—जिससे कि यह कई बातों में मिलती जुलती श्री—शिक्षा के नवीन उत्थान के पहले योरप में जो शिक्षा प्रचलित थी उससे किसी अंश में न्यून नहीं थी। ब्राह्मण शिक्षकों ने केवल एक ऐसी शिक्षा-पद्धति की रचना ही नहीं की जो राज्यों के विध्वंस और समाजों के परिवर्तन के पश्चात् भी जीती जागती बनी रही वरन उन्होंने इन सहस्रों वर्ष तक उच्च शिक्षा के प्रदीप को भी प्रज्वलित रखा। उनमें ऐसे ऐसे दार्शनिक उत्पन्न हुए जिनकी छाप भारत की शिक्षा पर ही नहीं वरन सम्पूर्ण संसार के बौद्धिक जीवन पर लगी है"।

बुद्ध-धर्म के समय में भी एक विशेष प्रकार की शिक्षण-प्रणाली का विकास और संगठन हुआ। बौद्धों की शिक्षण-पद्धति बहुत कुछ ब्राह्मणों के ही ढङ्ग की थी क्योंकि उसी के आधार पर इसकी रचना हुई थी। बौद्धों के कुछ विद्यापीठ बहुत ही बड़े थे। उनके शिक्षा के उच्च आदर्श ने चीन के कितने ही विद्यार्थियों को भी आकर्षित किया था। उनमें से कुछ ने इन विद्यापीठों के वर्णन लिखे थे जो अब तक मिलते हैं। बौद्धिक शिक्षा केवल धार्मिक शिक्षा न थी। बौद्धिक विद्यापीठों में वैद्यक के अध्ययन पर विशेष ध्यान रखा जाता था। उनका द्वार सब जातियों और सब संप्रदायों के लिए खुला था। कुलीन, अकुलीन, बौद्ध, भावी-बौद्ध और अबौद्ध सभी का स्वागत होता था। बौद्ध भिक्षुकों ने सर्वसाधारण में शिक्षा-प्रचार का महत् प्रयोग किया था। वर्मा में ब्रिटिशों के प्रवेश के समय बौद्ध-आश्रमों के कारण वहाँ का क़रीब क़रीब प्रत्येक पुरुष निवासी साक्षर था। रेवरेंड की कहते हैं—'वर्मा में ब्रिटिश अधिकार के पूर्व वहाँ का प्रत्येक बालक बौद्धिक आश्रमों में जाकर रहता था और भिक्षुकों से शिक्षा ग्रहण कर निकलता था।[२] इसमें सन्देह नहीं कि ब्रिटिश-शासन में वह देश-व्यापी साक्षरता जीवित न रह सकी।


  1. वही पुस्तक, पृष्ट ५७
  2. पृष्ठ ५०-५१।