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विदेशी संस्करण के लिए चित्रों के संग्रह करने का प्रयत्न भी किया जा रहा है। मैं अपने सहकारी और मित्र 'पीपुल'- सम्पादक लाला फ़ीरोजचन्द को अनेक धन्यवाद देता हूँ। बिना उनके परिश्रम और सहायता के कदाचित् यह पुस्तक इतनी जल्दी न तैयार होती, न छपती और न प्रकाशित होती।

इस भूमिका को समाप्त करने से पहले मैं एक बात और लिख देना चाहता हूँ। मैंने इस पुस्तक में अमरीका के जीवन के कुछ दृश्यों का वर्णन किया है। पर वह मुझे अत्यन्त अनिच्छा और दुःख से करना पड़ा है। अमरीका के जीवन में दूसरे प्रकार के दृश्य भी मिलेंगे। वे सुन्दर, उच्च और मानवीय हैं। वे संसार की सब जातियों और वर्णों के लिए मानवीय कृपारस से भरे हैं। उनका मैंने उस देश में पांच वर्ष रहकर स्वयं अनुभव किया था। इस पुस्तक में अमरीका के जीवन के कुछ काले धब्बों को दिखलाकर मैंने जो पाप किया है उसके प्रायश्चित्तस्वरूप मुझे दूसरी पुस्तक लिखनी पड़ेगी। उसमें व्यक्ति-गत वर्णनों और चरित्र-चित्रणों के रूप में अमरीका के उज्ज्वल दृश्यों का प्रदर्शन होगा। इस पुस्तक में ये विषय असङ्गत जचेंगे। मेरे तर्कों के साथ उनका मेल न बैठेगा। आशा है अमरीका के जीवन की केवल एक-तरफा बातें देने के लिए मेरे अमरीका-निवासी मित्र मुझे क्षमा करेंगे। अमरीका इस पुस्तक का विषय नहीं था। मैंने वहाँ के जीवन की कुछ दशाओं का वर्णन केवल तुलनात्मक दृष्टि से किया है।

इस पुस्तक की तैयारी, छपाई तथा प्रकाशन का काम बड़ी जल्दी में हुआ है। इसकी त्रुटियों को मुझसे अधिक कोई नहीं जानता होगा। पर एक संतोष है कि इसमें कोई बात ऐसी नहीं कही गई जिसकी सत्यता पर मुझे विश्वास न हो।

'मदर इंडिया' का हवाला देने में मैंने उसके अँगरेज़ी संस्करण से काम लिया है।

नई दिल्ली,
लाजपतराय
जनवरी १९२८