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'मदर इंडिया' पर कुछ सम्मियाँ

वह जाति सदा राजनैतिक पराधीनता में जकड़ी रहे। पुस्तक का विषय यही है; यद्यपि यह हो सकता है कि आरम्भ में लेखिका का यह भाव न रहा हो। प्राचीन घटनाओं के मनमाने और छल के साथ उपस्थित करने से भी इसी बात की पुष्टि होती है। कतिपय रवाजों को, जो जाति के केवल एक आधे वर्ग में प्रचलित हैं, यह लेखिका समस्त भारत में प्रचलित बताती है। वह भारत को 'संसार का संकट' कहती है परन्तु यह नहीं बतलाती कि संसार का संकट इन्फ्लुएब्ज़ा; जिसने १९१८ ईसवी में ६० लाख भारतवासियों के प्राण लिये थे, भारतवर्ष से बाहर ही उत्पन्न होकर इस देश में पहुँचा मद्रास में अच्छा पानी न मिलने की वह शिकायत करती है परन्तु इस बात पर ध्यान नहीं देती कि अभी गत वर्ष इस बात का भण्डाफोड़ हुआ था कि न्यूयार्क में दूध में अस्तबल के 'होस' का गन्दा पानी मिला कर बेचने से टाईफाइड ज्वर का प्रकोप हुआ था। वह काली के मन्दिर में बकरों की बलि की निन्दा करती है परन्तु मांसाहार का समर्थन करती है जिसके कारण योरप और अमरीका के लोगों की क्षुधा निवारण के लिए असंख्य पशुओं का निर्दयता के साथ वध किया जाता है ।.........

यदि मैं अपनी अमरीकन समाचार पत्रों की कतरनों की फाइलों में से (जो घूसखोरी, व्यभिचार, अशिष्टता, अपवित्रता, डाकेज़नी, धोका आदि बातों से भरी पड़ी हैं) एक उदाहरण उपस्थित करके हाल ही में एक जज ने जो घोषणा की थी कि अमरीका संसार में सबसे पापी देश है, उसका समर्थन करूँ और इससे यह निष्कर्ष निकालूँ कि अमरीका को पुनः उसी स्थिति में पहुँचा देना चाहिए जिसमें वह स्वाधीन होने से पहले था, तो निस्सन्देह मेरे लिए यह कार्य जितना सरल हेगा उतना ही व्यर्थ और 'नीचता-पूर्ण भी होगा। मैं इसके उत्तर से पहले ही से सहमत हूँ कि ये बातें वास्तविक अमरीका का बोध नहीं करातीं। भारतवर्ष के सम्बन्ध में भी मैं ऐसा ही तर्क चाहूँगा......।

इस बात के लिए कि भारतवर्ष में बड़ी बुराइयाँ हैं यह आवश्यक नहीं है कि 'अमरीका का एक साधारण नागरिक' उनका ढोल पीटता फिरे। भारतीय उनको दूर करने के लिए पीढ़ियों से उसी लगन से काम कर रहे हैं जिससे अमरीका के सुधारक उस देश में होनेवाली ६ हज़ार वार्षिक हत्याओं को रोकने के लिए और इँगलैंड के सुधारक लोग इन्द्रिय-रोगों को दूर करने के लिए प्रयत्न कर रहे हैं। भारतवर्ष में मनुष्यता से गिरी हुई जो बात बतलाई जाती हैं उन्हें मैं भली भाँति जानता हूँ क्योंकि मैंने उस देश की परोपकारिणी संस्थाओं में १२ वर्ष तक कार्य किया है। मुझे उनकी संख्या और सचाई दोनों बातों का ज्ञान है। परन्तु मैं यह निष्कर्ष निकालने के लिए अपनी बुद्धि को वेश्या नहीं बना सकता कि भारतवर्ष में पाप होते हैं इसलिए