यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४६२
दुखी भारत

और जोड़ देना चाहता हूँ कि यह कहना कि इस पुस्तक के प्रकाशन में भारत-सरकार का या लंदन के इंडिया आफिस का हाथ है, मूर्खता होगी। मुझे विश्वास है कि इस पुस्तक ने ब्रिटिश सरकार को चक्कर में डाल दिया है। आप इस पुस्तक को अनुचित महत्त्व दे रहे हैं। उसने करीब करीब भारत के प्रत्येक बड़े आदमी को निन्दास्पद बनाया।

"जहाज़ पर मेरे साथ कई एक अमरीकावासी थे। उन सबने यही कहा कि पुस्तक जिस चित्र को अंकित करती है वह सत्य नहीं हो सकता। मैं यह भी जानता हूँ कि प्रत्येक एंग्लो इंडियन अफसर, जो भारतवर्ष में रह चुका है, इस पुस्तक को केवल झूठी ही नहीं बल्कि शैतानी से भरी हुई भी समझता है।"

यह पूछे जाने पर कि क्या आप पुस्तक से कोई ऐसा उदाहरण दे सकते हैं जो सर्वथा मिथ्या हो, लार्ड सिनहा ने उत्तर दिया कि मुझे मिस मेयो का एक वक्तव्य स्मरण है जो सर्वथा मिथ्या है। वह यह है कि भारतीय माताएँ अपने बच्चों को अप्राकृतिक विषय-भोग की शिक्षा देती हैं। "इससे अधिक भयङ्कर असत्य की मैं कल्पना नहीं कर सकता। मैंने भारतीय मेडिकल सर्विस के आधे दर्जन अँगरेजों से, जिनमें से प्रत्येक भारतवर्ष में २५ वर्ष से अधिक रह चुका था, पूछा कि क्या आप लोगों ने कभी कोई ऐसी बात सुनी है? उन सबों ने यही उत्तर दिया कि इस बात को जैसे मैंने नहीं सुना वैसे ही उन्होंने भी नहीं सुना। उनका यह दृढ़ निश्चय है कि यह वक्तव्य मिथ्या है।"

****

आयर्लेंड के कवि और लेखक डाक्टर जेम्स एच॰ कज़िन्स, जो भारतीय सभ्यता के उत्कृष्ट विद्यार्थी हैं और जो इस देश को अधिक काल के निवास और अपने शिक्षा सम्बन्धी अनुभवों से जानते हैं, अपने 'शान्ति का मार्ग' नामक निबन्ध की भूमिका में लिखते हैं[१]––

'मदर इंडिया' नाम के भीतर असत्य का जो महान् प्रासाद खड़ा किया गया है बह जातीय विद्वेष की नींव पर खड़ा है और उसकी आधार-शिला वह मानसिक वञ्चना है जो अस्फुट रूप में होने के कारण और भी हानिकारक और भयानक है। यद्यपि इस पुस्तक के अन्त में भारत के प्रति सहृदयता-सूचक शब्द पाये जाते हैं परन्तु उनसे उस क्षति की तो तनिक भी पूर्ति नहीं हो सकती जो एक जाति को इस दृष्टि से कलङ्कित करने से हुई है कि


  1. मदरास गनेश एंड कम्पनी।