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संसार का सङ्कट––भारतवर्ष

है। साम्राज्यवाद और समाजवाद में या यह कहिए कि पूँजीवाद और समाजवाद में जो युद्ध चल रहा है उसमें कुछ समय लगेगा परन्तु सब लक्षणों से प्रकट होता है कि नवीन भावों की विजय अवश्यम्भावी है। बोलशेविज्म का सामना करने का एक ही उपाय है कि इस समय साम्रज्यावादी जातियाँ जिन जातियों को लूट-खसोट रही हैं और उनका रक्त चूस रही हैं––भारत भी उनमें एक है––उन्हें तुरन्त उनका अधिकार सौंप दिया जाय। नहीं तो असन्तुष्ट और लुटे देश बोलशेविज्म की उत्पत्ति के केन्द्र बन जायेंगे भारतवर्ष को स्वतंत्रता मिल जानी चाहिए नहीं तो हिमालय की श्रेणियों भी यहाँ बोलशेविज्म के प्रदेश को रोक नहीं सकेंगी।

अब हमें इस प्रश्न पर व्यापारिक दृष्टिकोण से भी विचार कर लेना चाहिए। अपनी भौगोलिक स्थिति से भारत निकट के पूर्व और दूर के पूर्व को जोड़ता है और विश्व के व्यापार का केन्द्र है। जाति की दृष्टि से देखा जाय तो यह योरपियन आर्यों और पीली जातियों को मिलाता है। गोरी और पीली जातियों में यदि कोई युद्ध छिड़ेगा तो उसका निपटारा भारतवर्ष ही करेगा। शान्ति के दिनों में भारतवासी समता और सौंदर्य की वृद्धि करेंगे। जाति की दृष्टि से उनका सम्बन्ध योरपियन लोगों से है। धर्म और संस्कृति की दृष्टि से वे चीनियों और जापानियों के निकट हैं।

इसके अतिरिक्त इसका एक रूप और भी है। ७ करोड़ मुसलमानों के होने से भारत इसलामी भावनाओं का भी एक महत्वपूर्ण केन्द्र है। वर्तमान समय में ब्रिटिश सरकार विभिन्न रूपों में हिन्दू-मुसलिम झगड़े उत्पन्न करके और पक्षपात करके मुसलमानों को संतुष्ट और अपनी ओर रखने की चेष्टा कर रही है। परन्तु इस नीति का असफल हो जाना अवश्यम्भावी है। क्योंकि मुसलमानों में अपने-पन का भाव बल पकड़ रहा है। भारतवर्ष की मुसलमान जनता में बहुसंख्यक ऐसे हैं जो विश्व में इसलाम के हित के लिए भारत का महत्त्व समझते हैं। हम यह कह सकते हैं कि इसलामी शक्तियों की स्वतन्त्रता भारत की स्वतन्त्रता पर निर्भर है। हिन्दू-मुसलमानों में जो वर्तमान सामयिक वैमनस्य है उसका किसी न किसी दिन अन्त हो जाना अनिवार्य है––कम से कम उस समय जब भारत के लाखों मुसलमानों को