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दुखी भारत

प्रसिद्ध अँगरेज़ विचारक और लेखक श्रीयुत जी० लावेस डिकिंसन ने पूर्व की यात्रा करने के पश्चात्, भारतवर्ष, चीन और जापान की सभ्यता पर एक निबन्ध लिखा था। उसमें उन्होंने अंगरेजों के भारतवर्ष में शासन करने की योग्यता पर विचार किया है। नीचे उन्हीं के शब्दों में उनका अनुमान दिया जाता है:-

"पश्चिम की समस्त जातियों में केवल अँगरेज़ ही ऐसे हैं जो भारतीय सभ्यता की खूबियों को सबसे कम समझ सकते हैं। अगरेज़ों में गुणग्राहकता सबसे कम होती है। वे भारतवर्ष में अपने साथ अपनी समस्त आदतों को ले जाते हैं: छावनियों में रहते हैं। निर्वासितों के समान २० या २५ वर्ष व्यतीत करते हैं। उसके पश्चात् वे लौट आते हैं और उनका स्थान लेने के लिए उन्हीं के समान मनुष्य भेजे जाते हैं। मार्ग की सुविधा ने इस प्रवृत्ति को और भी बलवती कर दिया है। जो अँगरेज़ भारतवर्ष में रहते हैं, वे अपने बच्चों को पढ़ने के लिए इंगलैंड भेजते हैं। उनकी स्त्रियाँ अपना आधा समय इगलैंड में ही व्यतीत करती हैं। वे स्वयं भी दूसरे तीसरे वष इंगलैंड जाते रहते हैं। उनका सदर भारतवर्ष नहीं इंगलैंड रहता है। उनके और भारतवासियों के बीच में जो खाड़ी है उसे कोई पार नहीं कर सकता*[१]

सर बैम्प फील्ड फुलर, जो पूर्वी बङ्गाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर थे और जिन्होंने लार्ड मारले के भारत-मंत्रित्व-काल में अपने पद से स्तीफा दे दिया था, अपनी 'भारतीय जीवन और विचारमीमांसा' नामक पुस्तक में लिखते हैं:-

"नये अँगरेज़ अफ़सर जिन उत्तरदायित्व पूर्ण कार्यो के लिए भारतवर्ष में भेजे जाते हैं, उनके लिए वे अत्यन्त अयोग्य होते हैं। वे उल्लेखयोग्य कोई कानून नहीं पढ़ते, भारतवर्ष का इतिहास नहीं जानते, राजनैतिक और अर्थ-विद्या नहीं सीखते; केवल किसी एक भारतीय भाषा का मामूली ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं। नौकरी के दूसरे विभागों में परिस्थिति और भी असन्तोषजनक है। जो नवयुवक पुलिस विभाग में अफसर होने के लिए भेजे जाते हैं उन्हें तो बिलकुल ही शिक्षा नहीं मिली रहती; यद्यपि उन्हें अपने कर्तव्य पालन के लिए भारतीय जीवन और विचारों का निकट परिचय अवश्य

  1. * 'भारतवर्ष चीन और जापान की सभ्यता पर निबन्ध' लन्दन, डेन्ट एण्ड सन्स, पृष्ठ ८-१९।