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'पैग़म्बर के वंशज'

मिस मेयो का हृदय भङ्ग करने के लिए इतना यथेष्ट होना चाहिए: क्योंकि उसने यह सोचा था कि मुसलमान 'अच्छे लड़के हैं और शासन के वर्तमान यन्त्र में कोई परिवर्तन नहीं चाहते। अब हम हिन्दू-मुसलिम दङ्गने के सम्बन्ध में, जिनका खूब विज्ञापन किया गया है और जिनकी खूब चर्चा हुई है, कुछ सम्मतियाँ उपस्थित करेंगे। बड़ी व्यवस्थापिका सभा के उपसभापति मौलवी मुहम्मद याक़ूब ने अखिल भारतवर्षीय मुसलिम लीग में सभापति की हैसियत से भाषण देते हुए निम्नलिखित विचार प्रकट किये थे:-

"हिन्दू-मुसलिम दङ्गों पर विचार करते हुए मैं किसी को दोष नहीं देना चाहता। परन्तु हमारे पैगम्बर हमें रास्ता बता गये हैं। उस पाकज़ात के मदीना के यहूदियों के साथ कुछ देने और कुछ लेने के भाव से किये गये समझौते के अनुसार हमें अपने प्राचरण को नियमित करना चाहिए। मेल का अर्थ यह न होगा कि एक जाति को दूसरी जाति खा जायगी। हमें एक सम्मिलित हिन्दू परिवार की भांति अपने घर में बैठकर आपस में बटवारा कर लेना चाहिए। ऐसे कार्य्य से बाह्य संसार हमारा आदर करेगा। पर यदि हम कानून की शरण लेंगे और एक तीसरे व्यक्ति से निर्णय करावेंगे तो संसार हमें अपने पूर्वजों के पवित्र नाम पर धब्बा लगाने का अपराधी ठहरावेगा (करतल ध्वनि) मैं समझता हूँ कि उदार और शिक्षित मुसलमानों में प्रतिशत ऐसे है जिन्हें मदरास-कांग्रेस का निर्णय स्वीकार होगा।"

दूसरे मुसलमान नेता सर अली इमाम ने, जो ब्रिटिश इंडियन केबिनट के सदस्य रह चुके थे, मुसलिम लीग के वार्षिक अधिवेशन में बहिष्कार का प्रस्ताव रखते हए निम्नलिखित विचार प्रकट किया थे:-

"इसके पश्चात् सर अली इमाम (बिहार) ने विषय-निर्धारिणी समिति की ओर से बहिष्कार का प्रस्ताब उपस्थित किया जिसे सभापति ने उस दिन के प्रातःकाल का मुख्य प्रस्ताव घोषित किया। यह इस प्रकार था:-'अखिल भारतवर्षीय मुसलिम लीग बलपूर्वक इस बात की घोषणा करती है कि शाही कमीशन और उसकी घोषित कार्य-प्रणाली भारतवासियों के स्वीकार करन योग्य नहीं है। इसलिए यह निश्चय करती है कि समस्त देश के मुसलमानों को किसी अवस्था में और किसी रूप में कमीशन से कोई सम्बन्ध न रखना चाहिए।'

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