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भारत के धन का अपव्यय—समाप्त


अप्रैल १९१३ ईसवी में सरकार के भिन्न भिन्न विभागों में अँगरेज़, भारतीय और ऐंगलो इंडियन नौकरों की संख्या नीचे लिखे अनुसार थी[१]:-

२०० रुपये मासिक या इससे अधिक की कुल नौकरियों की संख्या.................११,०६४

इसमें अँगरेज़ और ऐंगलो इंडियनों की संख्या...................६,४९१ अर्थात् ५२ प्रतिशत।

भारतीयों की संख्या.......................................................४,५७३ या ४८ प्रतिशत।

प्रोफेसर के॰ टी॰ साह ने इस व्यय की एक अङ्क-चक्र में विस्तृत व्याख्या की है। उसे हम नीचे उद्धृत कर रहे हैं। आशा है पाठकों को वह रुचिकर प्रतीत होगी:—

नौकरियाँ अँगरेज़ भारतीय ऐंग्लो इंडियन
२००—३०० रू॰ की १२ % ६४ % २४ %
३००—४०० " १९ " ६२ " १९ "
४००—५०० " ३६ " ४९ " १५ "
५००—६०० " ५८ " ३१ " ११ "
६००—७०० " ५४ " ३६ " १० "
७००—८०० " ७८ " १४ " ८ "
८००—९०० " ७३ " २१ " ६ "
९००—१,००० " ९२ " ४ " ४ "

हमारी राष्ट्रीय महासभा ने अपने प्रारम्भिक दिनों में भारतवासियों को स्वयं उन्हीं के देश में उच्च नौकरियों से इस प्रकार जानबूझ कर पृथक् रखने की सरकार की नीति का विरोध किया था। कांग्रेस के मनुष्यों ने इस बात पर ज़ोर दिया था कि इम्पीरियल सर्विसों के लिए भारतवर्ष और इंगलैंड में


  1. के॰ टी॰ साह-कृत 'भारतीय अर्थविभाग के ६० वर्ष' द्वितीय संस्करण, पृष्ठ १२१।