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विषय-प्रवेश


बाशिन्दों का इतना घोर नैतिक पतन होगया है वास्तव में बड़े प्रशंसा की बात मालूम होती है। जिल मकान में केवल स्त्रियाँ ही रहती हों वह देवस्थान के तुल्य माना जाता है । अत्यन्त निर्लज्ज गुण्डे तक उसके विरुद्ध आचरण करने का कभी स्वप्न में भी खयाल नहीं कर सकते।"*[१]

मिस मेयो डुबोइस की किताब ले कूड़ा एकत्रित करने में लगी थी। इसलिए उसकी इस राय को उसने जान बूझ कर छोड़ दिया। और कहा कि संतानोत्पत्ति की आयु प्राप्त हो जाने पर कोई हिन्दू स्त्री हिन्दुस्तान के लोगों की निगाह से गुजरने का साहस नहीं कर सकती। यहां उसने अपने डुबोइस से सलाह लेने की आवश्यकता नहीं समझी।

दुबोइस की नीचता-पूर्ण प्रचार-पुस्तक में मिस मेयों ने अपनी चतुराई का सम्मिश्रण करके उससे प्रमाण उद्धृत किये हैं। डुबोइस के प्रमाणों को मौके-बेमौके वह किस प्रकार उद्धृत करती है इसका जिक्र करते मिस्टर नाटराजन बहुत ठीक लिखते हैं :—

“मिस मेयो ने यह मूर्खता जान बूझ कर की है। प्रमाण यह है कि एबे दुबोइस की पुस्तक का उसने कई स्थान पर हवाला दिया है पर अपने पाठकों को वह कहीं भी नहीं बतलाती कि उस पुस्तक की हस्तलिपि १८०७ ई० में ईस्ट इंडिया कम्पनी को दी गई थी और उसमें जो वर्णन है वह हमारे समय से सवा सौ वर्ष पहले का है। एक स्थान पर वह कहती भी है तो यह कि वह वर्णन हम लोगों के समय से बहुत पुराना नहीं है। यहाँ हम उसके उस वर्णन का जिक्र कर रहे हैं जिसमें वह कहती है कि, एबे ने मालूम किया कि यह प्राचीन नियम [पति के प्रति पत्नी के कर्तव्य-सम्बन्धी] उन्नीसवीं सदी के हिन्दुओं का भी उसी प्रकार धर्म बना है†[२]। यद्यपि एबे के भारतीय जीवन का अधिकांश भाग १८ वीं सदी से सम्बन्ध रखता है। संसार की आँखों के सामने हिन्दुओं को मुंह पर कालिख पोत कर उपस्थित करने के उद्देश्य से मिस मेयो के लिए एक सदी आगे कूद जाना कोई बड़ी बात नहीं। पर उनसे भी कोई यह प्रश्न कर सकता है कि अब से सौ वर्ष पहले आम तौर पर योरप में या स्वयं मिस मेयो के देश में स्त्रियों की क्या स्थिति थी


  1. * तीसरा (आक्सफोर्ड) संस्करण, पृष्ठ, ३३९-३४०
  2. † मदर इंडिया पृष्ठ ७४