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भारत के धन का अपव्यय

सेना-सम्बन्धी बातों की जांच करने के लिए नियुक्त इशर कमेटी ने अपने विवरण के एक बड़े पत्र में लिखा था कि:––

"भारतीय सेना को हम साम्राज्य की कुल सेना से पृथक नहीं समझ सकते। शान्ति स्थापित करने के लिए जो सन्धि हुई है उसने भारतवर्ष में सेना का महत्व और भी बढ़ा दिया है। ठीक वैसे ही जैसे कि इससे साम्राज्य के अन्य भागों में विशेषतः ब्रिटिश द्वीपसमूह में सेना का महत्व चढ़ गया है।"

परन्तु यदि भारतीय सेना का उपयोग समस्त साम्राज्य के लिए किया जाय तो उचित यह होगा कि साम्राज्य उसके व्यय में भी भाग ले। वर्तमान परिस्थिति यह है कि ब्रिटेन साम्राज्य के विनोद के लिए बाजा बजवाता है और बाजा बजानेवाले को वेतन देता है भारतवर्ष। यह बाजा बजानेवाला भी प्रायः स्वयं ब्रिटेन ही होता है। यदि कभी भारतीय सेना के किसी भाग के लिए, जो साम्राज्य की रक्षा के लिए भारत की सीमा से बाहर भेजा जाता है, ब्रिटेन या साम्राज्य कुछ व्यय देता भी है तो हमें यह न भूल जाना चाहिए कि साम्राज्य उसके स्थायी व्यय में जरा भी भाग नहीं लेता। प्रोफेसर शाह कहते हैं:––

"यदि भारतीय सेना का उद्देश्य सीमा के देशों को जीतना हो; यदि एशिया में शक्ति बनाये रहने की इच्छा हो तो हम कहेंगे कि ये उद्देश्य हम पर साम्राज्य-वाद की दृष्टि से लादे गये हैं और इनसे इंगलैंड को उतना ही लाभ है जितना भारतवर्ष को हो सकता है। ब्रिटिश साम्राज्य की कुल सेना का सबसे बड़ा भारा भारतीय सेना से बना हुआ है और इसका सबसे अधिक व्यय भी भारत ने ही उठाया है। इंगलैंड के पश्चात् इस सम्बन्ध में भारत का ही नम्बर रहा है। ऐसी सेनाओं से साम्राज्य के प्रत्येक अङ्गको लाभ पहुँचता है पर सबसे अधिक स्वार्थ सवता है इंगलैंड का। तब साम्राज्य के हित के लिए रक्खी गई इस सेना के बढ़े हुए व्यय में इंगलैंड भी कोई भार क्यों नहीं लेता?............

"भारतवर्ष की भौगोलिक और राजनैतिक परिस्थिति ऐसी है कि हम इस बात का अर्थ नहीं समझ सकते कि स्वयं इस देश की रक्षा और लाभ के लिए भी ब्रिटिश-जल-सेना की आवश्यकता है। समस्त सम्भावनाओं के विरुद्ध