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बुराइयों की जड़—दरिद्रता

जाय तो १,९०,००,००,००० पौंड होती है। या नं॰ ७ के अङ्क-चक्र को लें तो ९०, २९,३६,००० पौंड होती है। इस प्रकार प्रति मनुष्य की वार्षिक आय का औसत ७ पौंड ६ शिलिंग या ७ पौंड १२ शिलिंग होता है। या प्रत्येक पुरुष, स्त्री या बालक की आय प्रतिदिन ५ पेंस होती है।

"संयुक्त-राज्य की समस्त जन-संख्या की अर्थात् ४,७०,००,००० मनुष्यों की सन् १९२० ईसवी की २,५०,००,००,००० पौंड आय पर विचार करें तो वार्षिक आय का औसत प्रतिमनुष्य लगभग ५३ पौंड पड़ता है। यह आय भारतवर्ष के प्रतिमनुष्य की वार्षिक आय की अठगुनी के लगभग पहुँचती है।"

प्रोफ़ेसर के॰ टी॰ शाह की 'भारत का धन और उसकी कर सहन करने की शक्ति' नामक पुस्तक से (बम्बई १९२४) नीचे हम एक अङ्क-चक्र उद्धृत करते हैं। इसमें प्रतिमनुष्य की वार्षिक आय के सम्बन्ध में भिन्न भिन्न आचार्य्यों के प्रमाण देखिए[१]:—

अनुमानकर्ता सन् प्रतिमनुष्य की आय का औसत
दादा भाई नौरोजी... ... १८७० २० रुपये
बैंरिग-बारबर... ... ... १८८२ २७ "
डिग्बी... ... ... १८९८-९९ १८.९ "
लार्ड कर्ज़न... ... ... १९०० ३० "
डिग्बी... ... ... १९०० १७.४ "
मिस्टर फिंडले शीराज़... १९११ ५० "
माननीय सर बी॰ एन॰ शर्मा[२] १९११ ८६ "
प्रोफ़ेसर शाह... ... १९२१-२२ ४६ "

भारतवर्ष की दरिद्रता की मुख्य पहचान यहाँ के इनकम टैक्स देनेवाले लोगों की संख्या है। ८ मार्च १९२४ ईसवी को बड़ी व्यवस्थापिका सभा में किये गये एक प्रश्न के उत्तर में फाइनेंस मेम्बर ने बतलाया कि २४ करोड़ जनसंख्या में इनकम टैक्स देनेवालों की संख्या १९२२-२३ में २,३८,२४२ थी। कम से कम २,००० रुपये की वार्षिक आय पर इनकम टैक्स लगाया जाता है। किसान लोग केवल जम़ीन का लगान देते हैं, इनकम टैक्स नहीं।


  1. पृष्ठ ६८।
  2. ६ मार्च १९२१ को कौंसिल आफ़ स्टेट में कहा गया।