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भारतवर्ष––वैभव का घर

नहरों के निर्माणकर्ता थे जो मैसूर के एक सिरे से लेकर दूसरे सिरे तक फैली हुई थीं और जिनके कारण उपजाऊ भूमि से प्रजा को अपरिमित अन्न-सम्पत्ति प्राप्त होती थी।

हालबेल साहब अपनी "भारतवर्ष के मार्ग" नामक पुस्तक में के सम्बन्ध में लिखते हैं[१]:––

"यहाँ जनता की सम्पत्ति और स्वतन्त्रता दोनों सुरक्षित हैं। सभी प्रकार के यात्रियों की रक्षा करना सरकार अपना पहला कर्तव्य समझती है, उनके पास व्यापार की सामग्री हो या न हो, सरकार उन्हें बिना किसी प्रकार का मार्गव्यय लिये एक पड़ाव से दूसरे पड़ाव तक साथ जाने के लिए रक्षक देती है।.........यदि इस प्रान्त में कोई रुपयों या अन्य मूल्यवान् वस्तुओं की थैली पड़ी पाता है तो उसे एक पेड़ से लटका देता है और तुरन्त निकट के रक्षक को सूचित करता है।......"

ढाका के सम्बन्ध में हम पढ़ते हैं कि[२]:––

"ढाका के धनी प्रान्त के प्रत्येक भाग में खेती होती थी।......न्याय करने में किसी के साथ पक्षपात नहीं किया जाता था।...... जसवन्तराय को पवित्र शिक्षा दी गई थी। उनमें सत्यनिष्ठा और कार्यक्षमता आदि के गुण कूट कूटकर भरे थे। उन्हें अपने प्रान्त का शासन करना ऐसे दङ्ग से सिखाया गया था कि उससे प्रजा के सुख और शान्ति की वृद्धि होती थी। उन्होंने अन्न का व्यापार सबके लिए खोल दिया था और उस पर से चुङ्गी उटा ली थी।"

बङ्गाल के सम्बन्ध में नीचे एक पैराग्राफ़ और दिया जाता है। इसमें बङ्गाल के अँगरेज़ों के अधिकार में आने से ठीक पहले का वर्णन है[३]:––

"बङ्गाल की यह दशा थी, जब अलीवर्दीखाँ ने उसके शासन की बागडोर अपने हाथ में ली। इस शासन में......प्रान्त की उन्नति हुई।


  1. रिफार्म पैम्फलेट, पृष्ठ २१
  2. स्टिवर्ट कृत बङ्गाल का इतिहास, पृष्ठ ४३०, रिफार्म पैम्फलेट, पृष्ठ २२
  3. रिफार्म पैम्फलेट में उद्घृत स्टिवर्ट का मत, पृष्ठ २२।