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विषय-प्रवेश


समिति, जिसके सभापति कलकत्ता के 'लार्ड विशप' हैं और सारे भारत के लाट-पादरी हैं यह स्वीकार करती है कि 'मिस मेयो की पुस्तक के अनुसार भारतवर्ष का जो चित्र खिंचता है वह झूठा है और भारत की जातियों के लिए अन्याय-पूर्ण है। प्रसिद्ध विदेशी विद्वानों ने जो भारत को भीतर-बाहर से ख़ूब अच्छी तरह जानते हैं, इस पुस्तक का बड़ी ज़ोरदार भाषा में खंडन किया है। प्रसिद्ध उपन्यास और नाटक-लेखक श्रीयुत एडवर्ड थामसन, जिनकी लिखी पुस्तक 'एन इंडियन डे' बहुत प्रसिद्ध है, मदर इंडिया को 'महान कष्ट पहुँचानेवाली रचना' बताते हैं और अपनी सम्मति देते हैं कि मिस मेयो ने, पुस्तक में यह कटु अपराध जोढ़ कर कि 'नीच बंशों पर गोरों का शासन इतना अधिक अच्छा है कि वे केवल दुष्टतावश असन्तुष्ट हैं, अपना पक्ष खो दिया।' सरकारी कार्यकारिणी समिति के भूतपूर्व मेंबर सर जान मेनर्ड मिस मेयो की पुस्तक के सम्बन्ध्य में संयम के साथ लिखने में बड़ी कठिनाई देखते हैं। पार्लियामेंट मेम्बर कर्नेल वेजउड १९२७ के 'वार्षिक हिन्दू' में मिस मेयो लिखित भारतीयों की काम-वासना-सम्बन्धी बातों पर विचार करते हुए लिखते हैं :—

"सभ्य जातियों की यह हमेशा आदत रही है कि वे अपने जिन पड़ोसियों से डरती हैं और घृणा करती हैं उनमें ऐसे दुर्गुणों की कल्पना करती हैं जिन्हें कोई पसन्द नहीं करता। इस उपाय से भय का स्थान भी घृणा ले लेती है। फ़्रांसीसियों के बारे में जर्मन लोगों ने कहा था कि वे विषय-भोग की अधिकता के कारण शक्तिहीन हो गये । हाँ, उन्होंने इस बात को केवल संक्षेप में कहा। क्रुसेड्स के समय में 'झूठे मेहोन्ड' के सब अनुयायी अप्राकृतिक विषय-वासना में लिप्त थे। इसी तरह 'बलगेरियन और अलबीजिन' लोग थे जब कि उनके विरुद्ध ईसाई-मत का प्रचार किया जा रहा था। मध्यकालीन फ़्रांस पर जब अँगरेज़ो के हमले होने लगे तो उस समय के फ़्रांसीसियों ने घृणा से हमें 'दुमदार बन्दर' कहना शुरू कर दिया था, यद्यपि वह एक ऐसा अवगुण है जिससे हम लोग बिलकुल बचे हैं।"

मदर इंडिया पर और दूसरे लोगों की सम्मतियाँ पाठकों के अवलोकनार्थ इस पुस्तक के अन्त में दी गई हैं।