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दुखी भारत

के सिद्धान्तों में कोई त्रुटि नहीं है। और महान् धर्म-शास्त्र-रचयिता मनु संसार के बड़े बड़े स्वच्छता-सम्बन्धी सुधार करनेवालों में से एक थे।"

इस क्षेत्र में हिन्दुओं की सफलता के सम्बन्ध में गवर्नर साहब ने अपनी सम्मति इस प्रकार प्रकट की थी:—

"जब हम नगर-समितियों की ओर से यंत्रों या नलों द्वारा जल पहुँचाने की व्यवस्था करते हैं; जब हम अस्पताल और चिकित्सा सम्बन्धी विद्यालयों की स्थापना करते हैं; जब हम प्लेग आदि महामारियों को फैलने से रोकने के लिए नियम बनाते हैं, और जब हम स्थानिक संस्थाओं को जनता के स्वास्थ्य पर दृष्टि रखने का कार्य्य सौंपते हैं तब हम किसी आधुनिक आविष्कार को नहीं उपस्थित करते या कोई योरपीय चमत्कार नहीं दिखाते। परन्तु हम केवल वही करते हैं जो शताब्दियों पहले किया जाता था। अब इतिहासकारों और पुरातत्ववेत्ताओं के अतिरिक्त और सब लोग प्रायः इस बात को भूल गये हैं। इन प्रश्नों के अध्ययन करने से उस प्राचीन कहावत की सचाई प्रकट हो जाती है जिसका तात्पर्य यह है कि इस संसार में कोई वस्तु नई नहीं है। यह कहावत बाधक ओषधियों के सम्बन्ध में भी सत्य प्रतीत होती है, यद्यपि इसके सम्बन्ध में हम सबकी यह धारणा है कि यह आधुनिक विज्ञान का अभी हाल का आविष्कार है। कर्नेल किंग ने इस बात को सिद्ध करके दिखा दिया है कि प्राचीन हिन्दुओं की जाति-व्यवस्था की इसी सिद्धान्त पर स्थापना हुई थी कि रोग छूत से होते हैं। हिन्दू और मुसलमान दोनों टीका लगाकर चेचक को रोकने की विधि जानते थे। जेनर ने टीका द्वारा चिकित्सा करने का जो आविष्कार किया या यह कि पुनर्बार जो आविष्कार किया उसके बहुत समय पूर्व यह विद्या योरपवालों को कुस्तुनतुनिया से प्राप्त हो चुकी थी। और इस चिकित्सा का ज्ञान कुस्तुनतुनिया आदि स्थानों को, जैसा कि मैं पहले बतला चुका हूँ, ईसाई-संवत् के आरम्भ-काल में भारतवर्ष से हुआ था।"

इसके पश्चात् गवर्नर साहब ने कहा—"कर्नेल किंग के अनुसार यह भी बहुत कुछ सम्भव है कि प्राचीन भारत में गाय के थन से चेचक का पीब लेकर चेचक का टीका लगाने की रीति लोगो को मालूम थी। और वे इस सिद्धान्त के लिए धन्वन्तरि का एक उद्धरण देते हैं। प्राचीन हिन्दू चिकित्सकों में धन्वन्तरि का स्थान सर्व-श्रेष्ट था। वर्तमान अवसर के लिए तो यह बात बड़ी उपयुक्त है। धन्वन्तरि कहते हैं—'गाय के थन पर से या कन्धे और कोहनी के बीच मनुष्य के हाथ पर से एक तेज़ चाकू द्वारा शीतला का पीब