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दुखी भारत

"बङ्गाल की राजधानी से भारतवर्ष की चौड़ाई के आधे फासले पर हुए राजा साहब ने इस बात का गम्भीरतापूर्वक समर्थन किया। उनके पूर्वज सदा से लुटेरे मरहठों के सरदार होते आये थे।"

मैंने उस कथा की उत्पत्ति के सम्बन्ध में सुना था। अब से चालीस वर्ष वह और भी अच्छे ढङ्ग से और शीघ्रता के साथ कही जाती थी। इस कथा के नायक थे लार्ड डफरिन और सर प्रतापसिंह––वीर राजपूत––जो प्रायः जोधपुर के राज्य-प्रतिनिधि का कार्य करते थे।

वायसराय ने पूछा––'यदि ब्रिटिश लोग भारतवर्ष को छोड़ कर चले जायँ तो क्या हो?

राजपूत योद्धा ने जवाब दिया––'हो क्या? मैं अपने जवानों को हथियार लेकर निकल पड़ने का हुक्म दे दूँगा और एक मास के भीतर ही बङ्गाल में न तो एक रुपया शेष रह जायगा न कोई कुमारी कन्या?

मैं सर प्रताप को भली भाँति जानता था। और लार्ड कर्जन के दरबार के समय मैंने उनसे पूछा कि कभी ऐसी बातचीत हुई थी। उन्होंने आवेश के साथ जवाब दिया––'मित्रवर! झूठ महा झूठ!! हम राजपूत लोग निर्दोष पर कभी वार नहीं करते। जब हम अपने शत्रुओं का अपमान करते हैं तब उन्हें भी तलवार से बदला लेने का अवसर देते हैं। अमरीकावासियों के कपट-जाल के सम्बन्ध में यहाँ मेरी सिडनी स्मिथ की सम्मति उद्धत करने की इच्छा होती है पर सोचता हूँ कि एक पागल स्त्री के प्रलाप के कारण सम्पूर्ण राष्ट्र का क्यों अपमान करूँ?

मदर इंडिया के २४ वें अध्याय का शीर्षक है––'फूस में आग'। इस अध्याय में मिस मेयो ने असहयोग के दिनों की अशान्तिपूर्ण बातों का एक-तरफा और पक्षपात-पूर्ण वर्णन किया है जिससे कि सब लोग भली भाँति परिचित हैं। इन आक्षेपों का असहयोगियों ने जो उत्तर दिया है मिस मेयो ने उस पर न तो विचार करने की कुछ चेष्टा की है और न उसका अपनी पुस्तक में कहीं उल्लेख ही किया है। अपनी पुस्तक के २९४ पृष्ठ पर तिथियों का असावधानी के साथ प्रयोग करने के कारण उसने चौरीचौराकाण्ड को मोपला-काण्ड से पहले लिख मारा है। वह कहती है––

'मोपला-काण्ड के आरम्भ होने से ६ महीने से भी कम पहले मलाबार से बहुत दूर संयुक्त-प्रान्त में चौरी-चौरा की घटना घटी।' यह कथन सत्य