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बीसवाँ अध्याय
हमारे परिचित विश्व-निन्दक-वृन्द

जो लोग अमरीका के पत्र-सम्पादकों की––जिस जाति से मिस मेयो आविर्भूत हुई है उसकी––नीति के सम्बन्ध में जानना चाहते हैं उनके लिए सबसे सरल उपाय यही है कि वे उपटन सिंक्लेयर की 'पीतल की हुण्डी' नामक साहित्यिक पुस्तक का अवलोकन करें। उपटन सिंक्लेयर ने अपने बालकाल में ज़िलाधीश के पद के लिए किसी उम्मेदवार को एक बार भाषण देते हुए सुना था। वह उम्मेदवार बवण्डर की भाँति अपने आन्दोलन में निमग्न था। वह व्याख्यानदाता प्रतिवर्ष नगर पुलिस को लाखों रुपया देनेवाली वेश्या-वृत्ति पर क्रोध प्रकट कर रहा था और नमक-मिर्च लगाकर अपने भाषण को उसने बड़ा मनोरञ्जक और प्रभावशाली बना लिया था। उसने उन कमरों का चित्र खींचा जिनमें सुन्दरी स्त्रियाँ लोगों के चुनाव के लिए एकत्र की जाती थीं, और चुननेवाले अपनी पसन्द की स्त्री के लिए ३ या ५ डालर देकर द्वार पर बैठे ख़ज़ानची से एक 'पीतल की हुण्डी' ख़रीद लेते थे। तब वे कोठों पर जाते थे और उस स्त्री के कृपापात्र बन जाने पर उसे वह हुण्डी दे देते थे। यह कहने के पश्चात् उस व्याख्यानदाता ने एकाएक जेब से एक धातु का टुकड़ा निकाला और चिल्लाकर कहा–'देखिए, एक महिला के सम्मान का यह मूल्य है।' उस व्याख्यान के सुनने के पश्चात् से सिंक्लेयर की यह धारणा हो गई कि 'यह पीतल की हुण्डी संसार की सबसे बड़ी और भयानक दुष्टता का चिह्न है।' यह सबसे बड़ी भयानक दुष्टता उसे अमरीका की सम्पादनकला में इतनी अधिक मात्रा में दिखाई पड़ी कि उसने इन दृश्यों का दिग्दर्शन करानेवाली अपनी पुस्तक का नाम ही 'पीतल की हुण्डी*[१]रख दिया।


  1. *दी ब्रास चेक (पीतल की हुण्डी), अमरीका की सम्पादन-कला का अध्ययन। उपटन सिंक्लेयर-लिखित। पास्साडेना, कैलीफ़ोर्निया। १९२०।