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पश्चिम में कामोत्तेजना

यह शिशु-हत्या, उन जातियों की अपेक्षा जो बिगड़ी हुई प्राचीन प्रथा के वशीभूत होकर शिशु-हत्या करती हैं, कहीं अधिक जान बूझ कर की जाती है। इस बात पर विचार करते हुए बच्चों के प्रति कठोर भाव और 'उनके विरुद्ध किये गये पापाचार' पर किसी को आश्चर्य्य नहीं करना चाहिए। अस्तु, इस विषय पर हम एक पृथक् अध्याय में विचार करेंगे।

योरप और अमरीका के अन्य इससे भी भयङ्कर पापों—माता-बहन के साथ व्यभिचार, पाशविक व्यभिचार इत्यादि—का वर्णन अत्यन्त भड़कानेवाला और वीभत्स होगा। अतः उसे हमने छोड़ दिया है। जो इनके सम्बन्ध में जानना चाहें वे ब्लाच, क्रैफ़्ट एवनिङ्ग, और दूसरे सरकारी चिकित्सकों के प्रामाणिक ग्रन्थ पढ़ें।

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मिस मेयो ने ऐंग्लो इंडियन अफ़सरों की गणना सन्तों में की है। वह कहती है—उनमें बहुत से साधु हैं। ये 'साधु' लोग मन ही मन में उसकी गन्दगी-संग्रह पर प्रसन्न हो रहे होंगे। क्योंकि यह उनके राजनैतिक विरोधियों को दुष्ट और कामी के रूप में उपस्थित करती है। हम उनकी समाज पर आक्षेप करना नहीं चाहते। परन्तु उन्हें यह बतला देना उचित है कि यदि एक अमरीकन यात्री ने भारतीय धर्माचरण का वर्णन करने के लिए अलकतरे की कूची का प्रयोग किया है तो दूसरे ऐंग्लो इंडियनों का चरित्र-चित्रण करने में भी ऐसा ही कर सकते हैं और सच तो यह है कि किया भी है। मिस मेयो की पुस्तक के इँगलिश प्रकाशक—जोनाथन केप—ने केवल ५ वर्ष पूर्व 'बारबारा विङ्गफील्ड स्ट्रैटफोर्ड' नामक एक अँगरेज़ महिला की पुस्तक प्रकाशित की थी। इस महिला ने कदाचित् मिस मेयो की अपेक्षा भारतवर्ष में अधिक समय व्यय किया था। इस पुस्तक में ऐंग्लो इंडियनों के समाज के सम्बन्ध में निम्नलिखित वर्णन मिलता है[१]:—

"क्योंकि इस पृथ्वी पर ऐंग्लो इंडियन से बढ़कर बुरा समाज कभी नहीं था। कला-साहित्य और सङ्गीत तो मानों उनके लिए है ही नहीं। युद्ध के दिनों


  1. भारतवर्ष और अँगरेज़, भूमिका लेखक, माननीय श्रीनिवास शास्त्री, (१९२३) पृष्ठ ३५।