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दुखी भारत

मिट रही है, कुछ पाश्चात्य देशों में इसकी वृद्धि हो रही है, और इस वृद्धि का कारण भी बिल्कुल भिन्न है। फ्रांस के सम्बन्ध में एम॰ व्यूरो कहते हैं[१]

"गर्भ-पात के साथ ही साथ शिशु-हत्या, माता-बहन के साथ व्यभिचार और ऐसे ऐसे पाप होते हैं कि प्रकृति अत्याचार से घबड़ा उठती है। शिशु-हत्या के सम्बन्ध में विशेष कहना नहीं। अविवाहिता माताओं को समस्त सुविधाएँ प्रदान की गई हैं। गर्भावरोध तथा गर्भपात का बाज़ार गर्म है। फिर भी शिशु-हत्या का पाप बढ़ता ही जा रहा है। सम्माननीय कहे जानेवाले लोगों के हृदयों में अब इसके प्रति पहले जैसा धृणा का भाव नहीं पैदा होता। ऐसे व्यक्तियों को ज्यूरी लोग भी अपने निर्णय में प्रायः 'निरपराध' घोषित कर देते हैं।"

शिशु-हत्या[२] के सम्बन्ध में फ्रांस के न्यायालयों का झुकाव किस ओर है? इसको दिखलाने के लिए एम॰ व्यूरो ने निम्नलिखित दो उदाहरण उद्धृत किये हैं:––

"फरवरी १९१८ ईसवी में लायर ज़िला के लिए स्थापित एसाइज़ की अदालत ने एफ॰ और डी॰ नाम की दो कुमारियों को शिशु-हत्या के अपराध में दो भिन्न भिन्न मुक़दमों में छोड़ दिया। पहली स्त्री के कुटुम्बियों ने उसके पहले शिशु की भाँति इस शिशु का भी पालन-पोषण करने का बचन दिया था। परन्तु उसने इसका ध्यान न कर नव-जात को पानी में डुबोकर मार डाला था। डी॰ नामक कुमारी ने अपने शिशु का गला घोट कर और उसका सिर दीवाल पर पटक कर उसे समाप्त कर दिया था।

"मार्च १९१८ ईसवी में सीन के ज्यूरीगण इससे भी बहुत आगे निकल गये। और ला स्कैला की मेरिया एम॰ नामक २१ वर्षीया नर्तकी को छोड़ दिया। इस नर्तकी ने अपने शिशु की जिह्या बाहर खींच लेने की चेष्टा की थी, उसकी खोपड़ी को चूर कर डाला था और उसका गला काट दिया था। इस कृति के पश्चात् उसने लाश को एक आलमारी में छिपा दिया था। यह फ्रांस की राजधानी की मार्च १९१८ की उस समय की घटना है जब, उन रक्त के प्यासे दिनों के आरम्भ में, देश की युवावस्था के सुमन मृत्यु का सामना करने गये थे ताकि फ्रांस बना रहे।"


  1. वही पुस्तक, पृष्ठ ३५।
  2. उसी पुस्तक से, पृष्ठ ३५, पादटिप्पणी।