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दुखी भारत

जीवन की एक गन्दगी––दाँत दिखाने और कान में कहने का विषय, अश्लील प्रदर्शन का विषय, गप्पबाज़ी, सभी चार व्यक्तियों में एक किसी दूषित कथा का विषय––बना दिया है। यह संहारक वायुमण्डल है। यह प्रेम को उतनी ही शीघ्रता के साथ नष्ट कर डालता है जितनी शीघ्रता के साथ गर्भ-पात कराने वाला वैद्य भावी मनुष्य को।"

विषय-भोग अब केवल समय नष्ट करने का साधन माना जा रहा है। ब्लाच के शब्दों में समय नष्ट करना भी एक महान् आधुनिक रोग है। 'समय नष्ट करना' या 'सुख से समय काटना' वर्तमान समय में किसी रोग से कम नहीं प्रतीत होता। 'दी ग्लास आफ़ फ़ैशन[१] के रचयिता ने यह सर्वया सत्य लिखा है कि आधुनिक पापाचार अधिकांश में 'सुख से समय काटने' की रुग्ण लालसा का परिणाम है:––

"हमारी सार्वजनिक सड़कों पर होनेवाले पापाचार में महान् परिवर्तन हो गया है। पतिता स्त्रियों की एक नवीन जाति उत्पन्न हो गई है। वे दफ्तरों और दुकानों से शिक्षित होकर निकलती हैं। वे युवती होती हैं और शिखर की चमक पर विमुग्ध हो जाती हैं। वे फ़ैशन, सदाचार पर आक्रमण करने वाली पोशाक, सुनहले विश्रामगृह, नाट्यशाला और रात्रि के विनोद-भवन का जीवन चाहती हैं।

"वे दुष्टा नहीं होती। वेश्याओं को यह शिकायत है कि वे उनकी प्रतिद्वन्द्विता करती हैं। पर उनका स्वभाव वेश्याओं का-सा पापी नहीं होता। उनसे पूछिए कि तुम क्या चाहती हो तो वे तुरन्त उत्तर देंगी––'दिल बहलाने का समय'। बस इतना ही,और कुछ नहीं। वे जीवन का आनन्द लेना चाहती हैं! हमारी समाज की सर्व-सम्पन्न तथा श्रेष्ट स्त्रियों के जीवन को उन्होंने अपना आदर्श बनाया है। और अपने अल्प साधनों के अनुसार उसी का अनुकरण करती हैं। इसलिए पहले वे अपनी लज्जा बेचती हैं और फिर उसके पश्चात् अपना सदाचार। यही मूल्य है जिसे देकर वे अपने 'दिल बहलाव का समय' खरीदती हैं।"

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इन बातों का अन्त यहीं नहीं हो जाता। इस प्रकार की यह कुव्यवस्था बड़े-बड़े भयङ्कर पाप करवाती है और भयङ्कर इन्द्रिय-रोगों का प्रसार करती


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