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दुखी भारत

कुमारियों को अपरिचित व्यक्तियों के कहने पर रविवार की पाठशाला या बाइबिल की पाठशाला में नहीं सम्मिलित होना चाहिए। वे ईसाई-धर्मप्रचारिका की या क्लर्क की पोशाक पहने हों तब भी नहीं।

कुमारियों को अपरिचित व्यक्तियों की प्रार्थना पर मोटर, टैक्सी या किसी प्रकार की गाड़ी में न बैठना चाहिए।

कुमारियों को किसी अपरिचित व्यक्ति के दिये पते पर कदापि नहीं जाना चाहिए। या अपरिचित मनुष्य के कहने पर किसी गृह, विश्रामगृह,या विनोद-भवन में नहीं प्रवेश करना चाहिए।

कुमारियों को अपरिचितों के साथ कहीं नहीं आना चाहिए। (वे अस्पताल की दाई के समान पोशाक पहने हों तब भी नहीं) यदि यह कहें कि तुम्हारा कोई सम्बन्धी अचानक घायल हो गया है या बीमार पड़ गया है तो ऐसी कथा पर विश्वास नहीं करना चाहिए। क्योंकि कुमारियों के उड़ाने का यह प्रसिद्ध ढङ्ग है।

कुमारियों को अपरिचित व्यक्तियों का दिया हुआ मिष्टान्न, भोजन, या पानी नहीं स्वीकार करना चाहिए। और न उनका दिया हुआ फूल सूँघना चाहिए। न उन्हें फेरीवालों से इत्र या अन्य वस्तुएँ खरीदनी चाहिए। क्योंकि सम्भव है इन वस्तुओं में कोई दवा मिली हो।

कुमारियों को विज्ञापन में देखकर या किसी नौकरी दिलानेवाली अपरिचित्त संस्था के द्वारा बिना उस नौकरी के सम्बन्ध में जांच-पड़ताल किये, उसे नहीं स्वीकार करना चाहिए।

कुमारियों को जब तक किसी सुरक्षित निवास का पता न हो तब तक लन्दन में या किसी अन्य बड़े शहर में एक रात के लिए भी न जाना चाहिए।

ये बातें उस देश की हैं जो हमारे यहाँ धर्मोपदेशक भेजता है!

एक बड़े प्रामाणिक लेखक डाक्टर अल्फ़्रेड ब्लास्को ने बड़े परिश्रम के साथ वेश्या-वृत्ति के सम्बन्ध में खोज करने के पश्चात् निम्न-लिखित बात कही है[१]

"यद्यपि वेश्या-वृत्ति की प्रथा सब युगों में थी पर उसे एक भीषण सामाजिक संस्था के रूप में परिणत करने का श्रेय केवल १९ वीं शताब्दी को प्राप्त


  1. एम्मा गोल्ड मैन द्वारा उद्धृत। उसी पुस्तक से पृष्ठ १८७।